श्रीकांत यादव
हमारी बढती आबादी ने,
हर मुद्दे पर हमको घेरा है |
प्रमुख समस्या पानी है,
पानी ने ही पानी फेरा है ||
नदी किनारे हम पसर गये,
नदियों ने किनारा तोडा है |
हमने अपनी सुबिधा देखी,
सुबिधाओं ने मुख मोडा है ||
उत्तराखंड कश्मीर की बाढें,
देश को अभी सताती हैं |
शीघ्र बढती आबादी रोको,
बर्बादी सबको चिढाती है ||
नदी घाटी या वादी हो हम,
सडकों खेतों तक तो फैले हैं |
करती करुण क्रंदना मातृभूमिं,
होते हरित आंचल इसके मैले हैं ||
जल जलधार तक नहीं छोडा,
तालाब पोखर सब लील गए |
मैदान और खलिहान की बातें,
इसे छूटे अब कितने मील गए ||
भारत में जनसंख्या बढ़ रही,
बढ़ते भ्रष्टाचार की तरह |
हमारे संसाधन ऐसे घट रहे,
घटते शिष्टाचार की तरह ||
वक्त है अपनी आबादी पर,
सरकार को कुछ करना होगा |
नियम कानून तो चाहिए ही,
सबको उस पर चलना होगा ||
श्रीकांत यादव
(प्रवक्ता हिंदी)
खोड़ा गाजियाबाद।