डॉ मधुबाला सिन्हा
दोस्तों की महफ़िल में मैं
दोस्त तलाशती रह गयी
दिया दगा दोस्तों ने
ख़ुद को सम्भालती रह गयी
न विछड़ेंगे दोस्तो हमने
वादा तो कर लिया
उन वादों में मैं अपना
तक़दीर बनाती रह गयी
कैसे कैसे लिखे मुकद्दर
कैसी दी गुस्ताख़ी है
कैसे फँसकर द्वंदों में मैं
खुद को ही सवांरती रह गयी
वादे वफ़ा धोखा दिया
दोस्ती का रंग खुला
नकली को असली बताया
कैसे तुझे अपना कहती रह गयी
जरा बताओ मुझको हमदम
किया खता क्या मैंने था
ताउम्र जीने मरने की संग
कसमें मैं खाती रह गयी
काँपा नहीं तेरा कलेजा
जब वादाफ़रोशी तूने की
लम्हा लम्हा मरती रही
फिर भी वफ़ा करती रह गयी
★★★★★★
डॉ मधुबाला सिन्हा
मोतिहारी,चम्पारण