डॉ अनुज कुमार चौहान "अनुज" कलम से


दोहा - गीत

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अनुशासन मन में रमे, 

रहे सत्य का ज्ञान ।

राग कलुषता छोड़ दें,

करें नहीँ अभिमान ।।

सत्य सहारा ही बने,

रखें ईश का ध्यान ।

व्यर्थ विमर्षक हों नहीं,

देश -प्रेम संज्ञान ।।

विनय शील गुण धर्म हो,

हो सबका सम मान ।

अनुशासन मन में रमे,

रहे सत्य का ज्ञान ।।

सत्याग्रह की आड़ में,

हो न कभी नुकसान ।

गरिमा धूमिल हो नहीं,

लोकतंत्र की शान ।।

हट रट से हल हो नहीं,

कहते सन्त सुजान ।

अनुशासन मन में रमे ,

रहे सत्य का ज्ञान ।।

जन-जीवन खुशियाँ वहैं,

विकसित हो विज्ञान ।

प्रगति किसी की ना रुके,

टूटे नहीं विधान ।।

भाव अनुज मन प्रेम का,

करो सदा गुणगान ।

अनुशासन मन में रमे,

रहे सत्य का ज्ञान ।।

 


अनुजयी दोहे

 -(झलकृत शूल उसूल )

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रोते हैं दिखते नहीं,

बाबूजी मुस्कात ।

अंगुल पकड़े थे कभी,

छोड़ चले वह हाथ ।।

दिन दीखे अब रात सा,

बिखर गये सब साज ।

दर्पण खूब निहारते ,

भूल रहे पल आज ।।

राज सिखाये थे जिसे,

वही हो गये राज ।

हाथ पैर बल खा रहे,

बिगड़ रहे सद्काज ।।

साथ रहे टूटी छड़ी,

समय सिखाये लाज ।

कद ऊँचा लगता जहाँ,

छिने वहीं सर ताज ।।

प्रतिक्षण मन बस सोचता,

शहर रहा मगरूर।

नज़र परायी थी सखे,

डगर लगे मजबूर ।।

साज ताज नाराज सब,

विफरे प्यारे फूल ।

बाबूजी आँखन तले ,

झलकृत शूल उसूल ।। 


अनुजयी दोहे 

==========


मधुवन झूमे गूंजता,

ज्यों मुरली का शोर ।

उपवन महके फाग सा,

धुनि अपनी चितचोर ।।

डगर भूल पनघट गई,

भूली मटकी नीर ।

याद पलों की ना रही,

आके यमुना तीर ।।

धुनि सुन बेसुध राधिका,

भूले बिसरे काम ।

श्याम बजाई बाँसुरी,

मोह लियो ब्रजधाम ।।



अनुजयी दोहे ---- 

✍🏽 साकी 

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साकी हाथन में लिये,

प्याला महक गुलाब ।

अधरन से छूलूँ गले ,

हाला प्रेम शबाब ।।

घूँट-घूँट से बढ़त है,

आशा प्यास नकाब ।

मौन रहें ताके नयन ,

निकले जुगल जबाब ।।

गला तरा-तर होत जब,

साकी मन समझात ।

किले बनें वक्तव्य के,

पाठ पढ़े पढ़वात ।।

इक- इक में दो दीखते,

दर्पण झूँठ खिताब ।

साकी पुस्तक सामने,

वाचन लगे हिसाब ।। 


अनुजयी दोहे

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संयम सुन्दर सार्थक,

सहज ध्यान सम्मान ।

मन में ईश्वर आस्था,

यत्न परिश्रम ज्ञान ।।

दया विनय चादर पहन,

उत्तम सजे विचार ।

अहम् लोभ दूरी बसे,

करूँ सदा उपकार ।।

ह्रदय प्रेम धारा वहे,

जगे समर्पण भाव ।

त्याग राग हो पल्लवित,

करुणा हो बुनियाद ।।



गीत --


राग में खो गई रागिनी आपकी 

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राग में खो गई ,रागिनी आपकी ।

मान ली जान ली,दामिनी आपकी ।।

पास आती दिखी ,आज गाती दिखी ।

आशिकी भी भली ,आजमाती दिखी ।।

चांद पाया सजी , चाँदनी आपकी ।

राग में खो गई,रागिनी आपकी ।।

राह मोड़े दिखे,भाव थोड़े दिखे ।

शाम को जाम के,पाँव ओढ़े दिखे ।।

कांपती भांपती ,बानगी आपकी ।

राग में खो गई, रागिनी आपकी ।।

ज्ञान की रीति सी,शान संगीत सी ।

ताल ही ना मिली,हार भी जीत सी ।।

ख्वाब बीता बुनूँ ,जिन्दगी आपकी ।

राग में खो गई  , रागिनी आपकी ।।

भूल को भूलती ,बेरुखी आपकी ।

पास आके पढ़ी,बेबसी आपकी ।। 

रात सी भा गई ,रोशनी आपकी ।

राग में खो गयी ,रागिनी आपकी ।। 


गीत

====

माखन चोर मुरलिया में ,जग स्वर खेल रहे ।

ग्वाल बाल सब मोह लिए,गल अलबेल रहे ।।

आते-जाते ध्याते मुनि,पुलकित हर्षायें ।

सोते-जगते गीता मय,रसपान करायें ।।

सन्त चरण धरती निर्मल,बढ़ती बेल रहे ।

माखन चोर मुरलिया में, जग स्वर खेल रहे ।।

जहाँ जन्म कान्हा लीना,पावन जेल रहे ।

गोकुल डगर बढ़त राधे ,तन-मन झेल रहे ।।

माथे रज ब्रज भव्य सजे ,जीवन मेल रहे ।

माखन चोर मुरलिया में ,जग स्वर खेल रहे ।।

जन्म भूमि मथुरा आये ,सावन मुस्काये ।

नयन दरश कर जल छाये , आँगन इतराये ।।

जग-भ्रम अनुज भवन-उलझन ,तृण अठखेल रहे ।

माखन चोर मुरलिया में ,जग स्वर खेल रहे ।।

माखन चोर मुरलिया में ,जग स्वर खेल रहे ।

ग्वाल बाल सब मोह लिए ,गल अलबेल रहे ।। 


पावन परम ,शहादत लिख दी 

             ( गीत )


दिल की नई , इबारत लिख दी ।

पावन परम , शहादत लिख दी ।।

वीरो कभी ,भूल ना पायें ।

बलिदानी वह , दिन दुहरायें ।

जान देश-हित , चाहत लिख दी । 

पावन परम , शहादत लिख दी।।

मातृभूमि का करुणिम पर्वा ।

कोटिश नमन , वीरता जज्बा ।।

गोद -भारती , राहत लिख दी ।

पावन परम , शहादत लिख दी ।।

वीर भगत  ,सुखदेव  राजगुरु ।

फाँसी चड़त, शान अरुणा अरु।।

हर्षित वतन ,इबादत लिख दी ।

पावन परम , शहादत लिख दी ।।

शोकाकुल है , मात भारती ।

अंश भवानी ,करत आरती ।।

मौत सुहानी ,आदत लिख दी ।

पावन परम ,शहादत लिख दी ।।

दिल की नई ,इबारत लिख दी ।

पावन परम , शहादत लिख दी ।।

 


अश्क समुंदर,सम गहराये

          !! गीत !!

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मेघ गीत नभ,जब-जब गाये ।

अश्क समुंदर ,सम गहराये ।।

नयनों लहरें,उमड़त आए ।

बीचों- बीच ,नाव  मुस्काए ।।

प्रेम -रीति जग,मन घवराये ।

अश्क समुंदर ,सम गहराये ।।

जन-जन सुखी,प्रीत शरमाये ।

रब की दुआ, मीत गण आये ।।

जीते आप , हार दुहराये ।

अश्क समुंदर ,सम गहराये ।।

जीवन -मरण ,खेल अठखेली ।

ह्रदय भावुक , मेल सहेली ।।

राहें  सत्य ,चलत घर पाये ।

अश्क समुंदर,सम गहराये ।।

चालों की हर , चाल सुहानी ।

भावों की सब ,विधा पुरानी ।।

सीखत अनुज ,गीत लिख भाये ।

अश्क समुंदर ,सम गहराये ।।

मेघ-गीत नभ ,जब -जब गाये ।

अश्क समुंदर ,सम गहराये ।।


।।  गीत ।।


कविता प्रण , विश्वास जगाती ।

ख्वाब चित्र , अहसास प्रभाती ।।

सृजन छन्द ,महिमा दर्शाये ।

मनोवेग , आभास कराये ।।

कल्पित कभी, सत्य दुहराती ।

कविता प्रण , विश्वास जगाती ।।

ह्रदय पुलकित,राग सजाए ।

धूप-छाँव , अनुराग लुभाए ।।

पल-पल राग , नया गढ़ जाती ।

कविता प्रण , विश्वास जगाती ।।

पुष्प-वाटिका ,मरुथल गाये ।

राजा कभी ,रंक दिखलाए ।।

तृण-तृण गाती,क्षण-क्षण भाती।

कविता प्रण ,विश्वास जगाती ।।

खिलती कली ,कभी शरमाये ।

भावुक भुवन ,तरुण तड़पाये ।।

मानव भावों ,लय गहराती ।

कविता प्रण , विश्वास जगाती ।।

वर्तमान को, राह दिखाये ।

जीने की ,हर चाह सिखाये ।।

सदियों के, इतिहास बताती ।

कविता प्रण ,विश्वास जगाती ।

कभी खुशी गम, पाठ पढाये ।

आशाओं के ,दीप जलाये ।।

जन-मन प्रभु ,तीर्थ रम जाती ।

कविता प्रण ,विश्वास जगाती ।।

नदियाँ कभी, प्रबल वह जाए ।

शहर गाँव ,गलियाँ कहलाए ।।

दर्शन पथिक ,राह सम थाती ।

कविता प्रण , विश्वास जगाती ।।

शब्द सृष्टि का,प्रणय कराये ।

सागर में , लहरें ठहराये ।।

सुबह-शाम ,चाहत तरसाती।

कविता प्रण,विश्वास जगाती ।।

चांद सितारे ,दिनकर लाए ।

तोता -मैना ,नाच नचाये ।।

बचपन बाल, सखा मुस्काती ।

कविता प्रण,विश्वास जगाती ।।

नफरत द्वार ,आग इतराये ।

प्रेम -पुंज मन ,फाग सुहाये ।।

अनुज-गीत ,मधुरिम बरसाती।

कविता प्रण ,विश्वास जगाती ।।

✍🏽 डॉ अनुज कुमार चौहान "अनुज" 

अलीगढ़, उत्तर प्रदेश ।

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