किरण झा
सोच में हूं
उधेड़-बुन में हूं
कुछ समझ नहीं पा रही
बस सोचती ही जा रही
ना कभी हासिल हुआ
ना कभी गुम हुआ
ना वो ख्वाब था
ना कभी हकीकत हुआ
पर हां.....
इक खुबसूरत रिश्तों की बुनियाद था
ऐसा कभी कभी ही होता है
कमी भी होती है
और सुकून भरा पल भी होता है
आंसू भी होते हैं और मुस्कान भी होती है
राहत भी मिलता है,तुफान भी मिलता है
निश्चिंतता की छतरी ओढ़ने की कोशिश में
कश्मकश की बारिश भींगो जाती है
ये वक्त है ना
बस धीरे धीरे बीती जाती है
ना जाने कौन सा पल आपको तन्हा कर दे
महफिल के कैद से रिहा कर दे
सुबह आती है आती रहेगी,
रात के आने से परेशान नहीं होता
ओढ़ लेने से अच्छाई का लबादा
"किरण" हर कोई महान नहीं होता
किरण झा ✍🏻 स्वरचित