मनोहर सिंह चौहान मधुकर
वो आंखो मै छाया रहता है।
वो गैर है अपना लगता है।।
अल सुबह ऐसे चला आता है।
जैसे पूरी रतिया जगता है।।
ख्वाबों में आ वो बतियाता है।
दूर होकर पास सा लगता हैं।।
होगे रूबरू तब क्या होगा।
ये मन धकधक सोचा करता है।।
दीदार को प्यासी मेरी आंखे।
दिल मीठे सपने बुना करता है।।
आंखो की नींद उड़ जाती हैं।
जब दिल उसको छूने लगता हैं।।
आखिर चाहता क्या है मनहर।
दिलवर एकटक देखा करता है।।
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कवि मनोहर सिंह चौहान मधुकर