पद

 


महातम मिश्र 'गौतम' गोरखपुरी

अब तो डमरू बजे शैलानी

पर्वत ऊपर किला आपका, हे बाबा बर्फानी।

लुढ़क रहें है राह पेै रोड़े, चीन करे मनमानी।

मति सुधार दो दुर्जन जन की, हे शिव अवघड़दानी।

बेधर्मी पड़ोस से खाँसे, जाति पाति का ध्यानी।

मंदिर तोड़े नारि रुलाये, बोले कपटी बानी।

मानवता अति शर्मशार है, दुखी भक्त प्रिय प्रानी।

एक जाति पर जुल्मी साया, कितनी है बेमानी।

सावन का उल्लास वहाँ पर, हर लेता अभिमानी।

जय हो बाबा महाकाल की, सोमनाथ सहिदानी।

अमिय चुराकर भाग रहे जो, उनको मिले न पानी।

गौतम का विश्वास अडिग है, शिव पूजा विज्ञानी।

धर्म कर्म अरु मर्म निराला, आर्य सभ्यता सानी।।

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