राखी का बंधन

 


नीलम द्विवेदी

राखी के त्यौहार को वंदन, भाई बहन के प्यार को वंदन,

दुनिया के हर रिश्ते से बढ़कर, है अटल विश्वास का बंधन,

निश्छल प्रेम भरा जिसमें, दर्द हृदय का पढ़ा हो जिसने,

अपने सम्मान से बढ़कर, दूजे का मान रखा हो जिसने,

मान और सम्मान का बंधन, अनुपम,अद्भुद प्यारा बंधन,

ऐसे पावन से बंधन को ही, कहते हैं राखी का बंधन,

हीरे - मोती ना सोना चांदी, है सबसे अनमोल ये बंधन, 

इस प्यारी सी धरती पर, है ईश्वर का वरदान ये बंधन,

इस सावन में मेरे भाई, चली है ये कैसी पुरवायी,

क्या सोचेगी तेरी कलाई, राखी तुमको भेज न पायी,

दूर देश में रहते हो तुम, आने की भी ख़बर न पायी,

राखी के दिन मेरे भैया, याद मुझे कर लेना दिल से,

प्यार मेरा पहुँचेगा तुम तक, आशीर्वाद पहुँचेगा तुम तक,

हर भाव पहुँचेगा तुम तक, माथे पर तुम तिलक लगाना,

पूजा में रखे हुए मौली धागे को, बांध कलाई में तुम लेना ,

और जरा तुम फिर कर लेना,दो पल को आँखों को बंद ,

मुझे पास अपने पाओगे, बचपन की यादें दोहराओगे,

राखी का तुम मुझको भाई, कोई भी उपहार न भेजो,

हो कोई बहन कहीं संकट में,उसके तुम काम आ जाओ,

हर नारी का सम्मान तुम करना,यही वचन तुमसे मैं मांगूँ,

जब किसी बहन के आँसू , पोंछ सके इस काबिल होगा,

राखी के धागे के ऋण से, मेरे प्यारे भाई उऋण तू होगा।


नीलम द्विवेदी

रायपुर (छत्तीसगढ़)।

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