श्री कमलेश झा
गांधी तेरे भारत में कितना फैला है भ्रष्टाचार
लूट और खसोट मचा है करता नहीं कोई आपका विचार ll
कमर कसा उस गोरों के साथ और लड़ा अहिंसा हथियार
क्रूर और जालिम को भी झुकाया अपना कर दृढ़ विचार ll
और छपे तुम हरे पत्तों पर जिसकी बोली लगती बाजार
सत्य अहिंसा के पुजारी अब चित्र बनाकर बिक रहे बाजारll
एक बार तुम गोली खाकर त्यागे अपने पवित्र प्राण
आज नहीं तो तिल तिल जलते रोज त्यागते अपने प्राण ll
सत्ता सौंपा जिस मानुष को उसने काटे बड़े ही मौज
उल्टा सीधा फैसला लेकर देश को किया कमजोर ll
क्या लकुटी में नहीं थी ताकत दो चार लगा जाते
भारत की सिसकती आत्मा पर कुछ तो मरहम लगा जातेll
नाम बेचकर यह खाता है गांधी तुम तो भलमानुष थे
गीता ज्ञान भी लेकर तुमने ये दुर्योधन कैसे पाले थेll
रामकृष्ण के थे आराधक तुम तो उनके आराधना में लीन
पता नहीं फिर तेरे चेले कैसे पूछे प्रश्न बे सिर और पैर बिन ll
गांधी से महात्मा हुए और हुए फिर बापू तुम
राष्ट्रपिता बनकर निखार आए लकुटी वाले बापू तुम ll
इतने पर भी बापू तुम पर लगते रहे पक्षपात के आरोप
जिसको तुमने सगा समझा था वही लगाते थे आरोप ll
बेशक मन साफ तुम्हारा सादा जीवन और उच्च विचार
कहीं-कहीं तो लगता बापू तुमने भी छोड़ा विचार ll
पाक खड़ा वो माथे पर करता रहता हम पर वार
कहते हैं यह तेरी मर्जी जिसको झेले भारत ही आज ll
अगर तुमने लगाया होता उस जिन्ना के कनपटी पर हाथ
फिर उस दगाबाज जिन्ना का बढ़ता ना दुस्साहस साथ ll
सत्याग्रह तो खूब किए और किए असंभव कार्य
चिर निद्रा में सोकर भी बापू आज भी आते हो याद ll
ऊपर से ही देखो बापू आज का भारत कैसा है
जैसा तुमने सोचा था क्या आज का भारत वैसा है ll
श्री कमलेश झा
शिवदुर्गा विहार
फरीदाबाद