डॉ पंकजवासिनी
काल साक्षात् देखो खड़ा!
चुग रहा नित मनुज का दाना!!
धैर्य संबल सब छोड़ चले!
जब साँसों का मुश्किल बाना!!
संबंध सारे पडे़ बौने!
सबने अपना स्वार्थ देखा!!
रिश्ते सारे हैं लहुलुहान!
स्नेह की पड़ी क्षीण रेखा!!
चहुँओर अँधेरा छा रहा!
मनुज मन कितना घबरा रहा!!
चहुँओर अंँधेरा है तो क्या!
आशा दीप जलाए रखना!!
तम के नग को ढहना ही है!
धीर से मन बहलाय रखना!!