व्यंग्य
(एक जुलाई)
सुधीर श्रीवास्तव
अच्छा है बुरा है
फिर भी जन्मदिन तो है,
मगर आप सब कहेंगे
इसमें नया क्या है?
जब जन्म हुआ है तो
जन्मदिन होगा ही।
आपका कहना सही है,
बस औपचारिक चाशनी की
केवल कमी है।
उसे भी पूरा कर लीजिए
बधाइयों ,शुभकामनाओं का
पूरा बगीचा सौंप दीजिये,
दिल से नहीं होंगी
आपकी बधाइयां, शुभकामनाएं
मुझे ही नहीं आपको भी पता है,
मगर इससे क्या फर्क पड़ता है?
कम से कम मेरे सुंदर, सुखद जीवन
और लंबी उम्र की खूबसूरत
औपचारिकता तो निभा लीजिये।
मेरे जीवन यात्रा में एक वर्ष
और कम हो गया यारों,
जन्मदिन की आड़ में
मौका भी है, दस्तूर भी,
जीवन के घट चुके
एक और वर्ष की आड़ में
मन की भड़ास निकाल लीजिए,
बिना संकोच नमक मिर्च लगाकर
शुभकामनाओं की चाशनी में लपेट
मेरे जन्मदिन का उत्साह
दुगना तिगुना तो कर ही दीजिए।
कम से दुनिया को दिखाकर ही सही
औपचारिकता तो निभा ही दीजिए ,
जन्मदिन पर मुझे बधाइयां देकर
अपना कोटा तो पूरा कर लीजिए।
◆ सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उ.प्र.
8115285921
©मौलिक, स्वरचित