"लफ़्ज़ों के डॉक्टर्स"
चिकित्सक दिवस पर 'पिंकिश' द्वारा स्वरा के पटल पर देश की प्रसिद्ध चिकित्सको ने अपने मन के उद्गार व भावों को बेहद खूबसूरत अंदाज़ में लफ़्ज़ों में पिरोया और अपनी मार्मिक व ह्रदयस्पर्शी कविताओं से श्रोताओं को कोरोना काल में डॉक्टर्स की स्थिति,मानसिक दशा व प्रयासों से अवगत करवाया। उनके मुख से उनके अनुभव जान कर उस मुस्कान के पीछे का दर्द और चिंता को समझ पाना इस कार्यक्रम की सार्थकता व सफलता प्रतिपादित करती है।
कार्यक्रम का आरंभ पिंकिश की महासचिव शालिनी गुप्ता जी ने बहुत ही सुंदर अंदाज में किया और डॉक्टर को किसी सिपाही से कम नहीं बताया क्योंकि जैसे एक सिपाही देश की रक्षा में तत्पर रहता है वैसे ही चिकित्सक भी रोगी की रक्षा हेतु अपने फर्ज को पूरा करने से पीछे नहीं हटता। कार्यक्रम का संचालन करने के लिए उन्होंने डॉक्टर शैला जो वरिष्ठ गायनोकोलॉजिस्ट व इनफर्टिलिटी स्पेशलिस्ट हैं उन्हें आमंत्रित किया। डॉक्टर शैला ने अपनी एम.बी.बी.एस के दिनों में पहली कविता का सृजन किया था उसी को सुनाते हुए उन्होंने कहा
"जब मैं सोता नहीं दो तीन दिन और रात तक मरीजों की चीखें मुझे चीरती हैं अंदर तक"
पर आज के परिपेक्ष्य में उन्होंने अंत में यह कहा कि
"दोस्त भगवान का दर्जा मत दो मैं भी वही हूँ, वही हाड और मांस ,
आप मुझ पर भरोसा रखो कायम करो वह जज्बात "
उन्होंने यह भी कहा कि डॉक्टर मरीज से तटस्थ नहीं रह सकते और धीरे-धीरे उनके साथ मानसिक रूप से जुड़ जाते हैं ,एक रिश्ता बना लेते हैं।
इसके बाद उन्हीने बरेली से डॉक्टर मृदुला जी अपनी वरिष्ठ सहयोगी है को आमंत्रित किया। उन्होंने भी बहुत ही प्रभावशाली ढंग से अपनी कविता प्रस्तुत की और कहा
"मुझे भी दुख होता है
जब एक शिशु को गर्भ में माँ
नौ महीने पाल कर
परंतु समाज की कुरीतियों के कारण
बच्चे को जन्म नहीं दे पाती दुख होता है" समसामयिक परिपेक्ष्य में उन्होंने पंक्तियाँ आगे बढ़ाते हुए कहा
" दुख होता है जब औरों की लापरवाही
दो ग़ज़ दूरी मास्क भारी पड़ जाती है
एक काम पर जाते पिता पर ।"
कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए डॉक्टर सुबुही रिजवी ने अपने सभी सहयोगी दोस्तों को प्रेरणा देते हुए अपनी पंक्तियाँ कही
"पलक नहीं झपक अभी
तू थक के बैठ ना कहीं
तेरे काम है कई अभी
पलक नहीं छपा अभी "
दिल्ली की वरिष्ठ गाइनेकोलॉजिस्ट डॉक्टर अनीता रजोरिया ने कहा कि उद्विग्न होने पर कलम चलने लगती है तो नई कविता का जन्म होता है ।कोरोना काल में भी कुछ लोग कालाबाजारी और व्यापार करने लगे तो उनकी कलम ने कहा -
"क्यों कुछ लोग मौत के सौदागर बन रहे
कुछ लोग हाथ थामना तो दूर
जीवन रक्षक साधनों का अनुचित व्यापार कर रहे क्या आत्मा कचोटती नहीं
परमात्मा से डरती नहीं"
दाँतों की डॉक्टर साक्षी शर्मा ने बहुत ही खूबसूरत चित्र अपने शब्दों से प्रस्तुत किया। एक डॉक्टर परिवार का और उसकी अस्त व्यस्त जिंदगी का
"सबको नजर आई उसकी कमाई इज्जत
काश कोई देख पाता उसकी जागती रातें
उसके रोते बच्चे ,दुखता सर ,बिखरा पड़ा है"
डॉक्टर शैला ने बताया कि स्ट्रेस और इनसाइटी सामान्य लोगों में 18% है तो डॉक्टरों में 28% पाई जाती है ।मुम्बई से डॉक्टर मनाली पटेल ने कोरोना काल में जब रोगी के रिश्तेदार उनसे मिलने नहीं आ पाते तो दोनों की भावनाओं को समझते हुए व्हाट्सएप कॉल द्वारा भावनाओं का लेन देन करने के लिए एक ऑनलाइन खिड़की की कल्पना की और उसे साकार भी किया ।
"खुली खिड़की जो होती है अस्पताल में ,
खुलती है घर के हॉल में
आंसू इधर भी है उधर भी
बेसब्री गुस्सा नाराजगी इधर भी है उधर भी
आशा की किरण की खोज इधर भी है उधर भी ऊपर वाले से शिकायत इधर भी है उधर भी जिंदगी के लिए भीख मांगता दिल इधर भी है उधर भी,
प्रार्थना करती हूँ यह सभी जल्दी निकल जायें मेरी खिड़की से
हर एक चेहरे के लिए सिर्फ और सिर्फ खुशी पहुँच पाए "
अंत में हिंदी भाषा द्वारा मन की अभिव्यक्ति को स्वीकारते हुए हिंदी बोलना भी जरूरी है इस बात की पुष्टि सभी चिकित्सकों ने की। पिंकिश की महासचिव शालिनी जी ने सभी का शुक्रिया अदा किया और इस प्रकार डॉक्टर्स डे का आयोजन
सार्थकता के सोपान चढ़ता हुआ सबके दिल में उतर गया।
तरुणा पुण्डीर तरुनिल
नई दिल्ली।