श्रीकांत यादव
उस महा पावन जन्म स्थली से,
अब दूर का ही नाता शेष रहा |
नवजात शैशव जहां आँखें खोलीं,
मात्र स्मृतियों का अवशेष रहा ||
संदली सुवासित सोंधी मिट्टी पर,
डगमग शैशव ने जहां पांव रखा |
वही स्मृतियों में संचित है अब,
जहां जीवन ने पहला स्वाद चखा ||
अधम क्षुधातुर पेट के कारण,
परिस्थितियां कुछ अनिवार्य बनीं |
पावन जन्मभूमिं से विरक्ति की शर्तें,
कुछ कारण वश स्वीकार्य घनी ||
सुमधुर स्मृतियां व्याकुल कर जातीं,
कोमल अन्त:स्थल हिला जातीं |
तालाब पोखरों के सुखद स्वप्न,
अखाड़े की याद दिला जातीं ||
जिसके ओर-छोर से बचपन परिचित ,
जिसकी स्मृतियाँ अजब अनोखी हैं |
जहां शहरों सा धमाल न धोखा था,
जहाँ स्वर्गिक आनंद और शोखी हैं ||
अमराईयों की वह कलरव कूक,
जहां बौरों की मदमत्त तैलाक्त गंध |
तैरती जलमुर्गियों का अबाध झुँड ,
बिखरता आक्षि का अप्रतिम सुगंध ||
नर्म हरी रेशमी कालीन फसलों की,
बिछती जहां क्षितिज के छोरों तक |
मेडों को सजाती हरी कोमल घासें,
भरते रस रस गन्ने के पोरों तक ||
महमह दिशा गमकाती सरसों,
अलसी मसूर मटर मदमाती |
आम्र बौर जब हवा में घुलता,
कटहल की सुगंध झुमा जाती ||
लाल कोपलों से गदराई डालें,
उत्साह ऋतु बसंत भर जाता |
हर्षित मन हो पुलकित काया,
टपके महुआ रस छलकाता ||
बाल मंडली बसंत पंचमी पर्व पर,
अपने रीति अभिनंदन करती थी |
घास फूस सूखी पत्तियाँ ले लेकर,
स्थापित होलिका का वंदन करती थी ||
होली दहन की हुल्लड़बाजी में ,
अर्थ अनर्थ की चिंता किसको |
सूखा मिला जो होलिका में डाला,
कोई रोक न पाता था जिसको ||
गांव के नायक अधिनायक न थे,
वहां सिक्का अपना ही चलता था |
खेल कुश्ती में जो भिड़ जाता,
केवल अपना हाथ ही मलता था ||
ऊंची कूद हो या लंबी छलांग,
क्रिकेट कबड्डी या फुटबॉल सही |
गदा भांज बल जौहर दिखलाता ,
कुश्ती का प्रतिद्वंद्वी न मिला कहीं ||
गांव मड़ार के हम उम्र सभी,
मित्रता के बंधन में बंधे रहे |
मदद मित्रों का मूल मंत्र था,
शिक्षा के निमित्त थे सधे रहे ||
अगल बगल कई गावों में भी,
अपने घनिष्ट मित्र थे हर कहीं |
श्रीकांत सतीश और विजेंद्र से ,
लोग कहा करते थे मित्र नहीं ||
तेरा अब अविचल अहवात रहे,
स्व ग्राम देवता करें रंजन |
तेरे वैभव की अमरत्व कल्पना,
अश्रु अभिसिंचित अभिनंदन ||
तेरी मिट्टी की खुशबू बनी रहे,
तेरा कण कण बना रहे चंदन |
सब विजेन्द्र सिंह सा मित्र बनें,
हे जन्मभूमि तेरा कोटिश: वंदन ||
( विजेंद्र सिंह को समर्पित)
श्रीकांत यादव
(प्रवक्ता हिंदी)