फिज़ा में बिखर जाने दो...

 


उषा शर्मा त्रिपाठी

बड़े सब्र से रोक रखा है मै ने कि, इन अश्कों को अब आंखों से बह जाने दो! 


बस एक लम्हा हुं मैं तेरी ज़िंदगी का कि, मुझे अपने पहलू से गुजर जाने दो! 


बेरहम है ये दुनियां की रस्में कि, धुआं बन के मुझको फिज़ा में बिखर जाने दो! 

                    

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