सुभाषिनी जोशी 'सुलभ'
हर तीर पर निशाना साधना चाहती हूँ।
आइनों की हकीकत जानना चाहती हूँ।
जहान को बस में करने की आरजू लिए,
लहरों को दामन में थामना चाहती हूँ।
पलभर के लिए तो जी लूँ जिन्दगी अपनी,
कुछएक शौक में भी पालना चाहती हूँ।
कोई गम मिल जाए इस जीवन में ऐसा,
जिसके लिए रातभर जागना चाहती हूँ।
जीवन की शाम ए अलम ढलने से पहले,
दुखों को मीजा़न में तौलना चाहती हूँ।
बाकी सरहद ना रहे जमाने में कोई।
मुल्कों की खाई को पाटना चाहती हूँ।
क्यों सस्ती हो गई मौत दुनिया में इतनी,
हरइक जां की कीमत आँकना चाहती हूँ।
सुभाषिनी जोशी 'सुलभ'
इन्दौर मध्यप्रदेश