राजेश "तन्हा"
अपने हाथों से जिसे बनाया है उसे मिटाऊँ कैसे।
मैं उनकी जिंदगी का तमाशा बनाऊँ कैसे।।
खुद से भी बढकर चाहा है मैंने उसको,
बिना पागल हुये भला उसे बुलाऊँ कैसे।
वो रकीबों के संग जश्न मनाने में लगी है,
और मै सोचता रहता हूँ उसके लिये खुशियाँ लाऊँ कैसे।
वो कहती भी थी अक्सर कि खुदगर्ज़ है वो,
उस जैसी खुदगर्ज़ी मैं खुद में लाऊँ कैसे।
ए खुदा तू ही बता कोई रास्ता उसे भुलाने का,
मेरी रूह की हिस्सेदार है वो मैं भुलाऊँ कैसे।
दो पल के लिये ही चाहे हसीँ दी लव पे उसने,
वो यादगार पल आख़िर मैं भुलाऊँ कैसे।
वो भटकी हुई है राह अभी पता है मुझे ,
मैं सोच रहा हूँ बिना ठोकर लगे उसे वापिस लाऊँ कैसे।
राजेश "तन्हा"
रतनाल, बिश्नाह, जम्मू जे के यू टी-181132