पढे़गा कौन..?
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स्याही खत्म हुई मेरे कलम की,
अब भरेगा कौन?
लिख तो रहा हूं मैं,
मगर पढ़ेगा कौन..?
लोग सब हैं समय के अभाव में,
बेचैन,व्यस्त सब जी रहे तनाव में।
विश्राम शब्दों की छांव में करेगा कौन?
लिख तो रहा हूं मैं,
मगर पढ़ेगा कौन..?
आओ एक नई बात बताऊंगा,
मैं तुम्हें जिंदगी के पाठ पढ़ाऊंगा।
मेरी पुस्तक का पाठक बनेगा कौन?
लिख तो रहा हूं मैं,
मगर पढ़ेगा कौन..?
तुम सोचते हो मैं ही दुखी हूं,
पढ़ कर देख मैं भी दुखी हूं।
विपत्तियों के साथ भी खड़ा रहेगा कौन?
लिख तो रहा हूं मैं,
मगर पढ़ेगा कौन..?
मैं लिखता रहूं और कोई ना पढे़,
फिर लेखन की गाड़ी आगे कैसे बढ़े?
मेरे विचारों की सवारी करेगा कौन?
लिख तो रहा हूं मैं,
मगर पढ़ेगा कौन..?
पन्ने उलट-पुलट के रह जाते हो,
अब कौन पढ़ें,ये सोच के रह जाते हो।
अनंत ज्ञान की हिफाजत करेगा कौन?
लिख तो रहा हूं मैं
मगर पढ़ेगा कौन..?
विष को अमृत कर दूं,
मृत को जीवित कर दूं।
मेरे भावों का रसपान करेगा कौन?
लिख तो रहा हूं मैं,
मगर पढ़ेगा कौन..?
इंसान,इंसान बने कैसे?
मानव महान बने कैसे?
मेरी अभिव्यक्ति को व्यक्ति समझेगा कोन?
लिख तो रहा हूं मैं,
मगर पढ़ेगा कौन..?
उत्तम चरित्र, व्यक्तित्व हो जाए,
जीवन सबका साहित्य हो जाए।
पवित्र पथ पर पांव आखिर धरेगा कौन?
लिख तो रहा हूं मैं,
मगर पढ़ेगा कौन..?
'चौक'
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ये कितनी पीढ़ियां देख चुका,
एक पीढ़ी अब भी देख रहा
और कितनी पीढ़ियां देखेगा,
यह ज्ञात ना होने वाला है।
कई पीढ़ियों का रखवाला है,
ये चौक बड़ा निराला है।
मैं सदा ही सत्य की राह चलूं,
गीता पर रखकर हाथ कहूं
महाभारत छिड़ता रोज यहां,
षडयंत्र सब ने कर डाला है।
कई पीढ़ियों का रखवाला है,
ये चौक बड़ा निराला है।
जरा ठहरो मेरी बात सुनो,
निश्चित ना कोई हालात सुनो
कभी जोखिम तो कभी जश्न यहां,
इस पथ से गुजरने वाला है।
कई पीढ़ियों का रखवाला है,
ये चौक बड़ा निराला है।
कभी खट्टी-मीठी बात चले,
शुभ दिन कभी काली रात रहे
सुख-दुख,तृप्ति कभी प्यास यहां,
महादान कभी घोटाला है।
कई पीढ़ियों का रखवाला है,
ये चौक बड़ा निराला है।
होरी, चैता हर ताल बजे,
हुलसे बसंत हर साल सजे
कभी प्रीत के गीत की गूंज उठे,
कभी हिंसा होने वाला है।
कई पीढ़ियों का रखवाला है,
ये चौक बड़ा निराला है।
हमने इसकी सच्चाई को,
अच्छाई और बुराई को
जो झेल गया कह दूं कैसे,
कुछ बात छुपाने वाला है।
कई पीढ़ियों का रखवाला है,
ये चौक बड़ा निराला है।
किसका सफर कब तक है यहां,
रुक जाए कोई जाने कहां
हिसाब किताब बराबर तो,
ये सबका रखनेवाला है।
कई पीढ़ियों का रखवाला है,
ये चौक बड़ा निराला है।
कई आए कितने चले गए,
कुछ बुरे भी थे कुछ भले गए
ये मंच वही पुराना बस,
किरदार बदलने वाला है।
कई पीढ़ियों का रखवाला है,
ये चौक बड़ा निराला है।
' मैं '
पीपल,बरगद की छांव सा- मैं,
गहरी दरिया में नाव-सा मैं।
कभी पतझड़,बसंत कभी बरसात रहूंगा,
मैं खास था,खास हूं,और खास रहूंगा ।
बात का पक्का हूं,
इंसान सच्चा हूं।
खड़ा हर वक्त सच के साथ रहूंगा,
मैं खास था,खास हूं,और खास रहूंगा ।
जिस्म महकता मेरा इमानदारी से,
रिश्ता सबसे मेरा,दुराचारी से, सदाचारी से।
गले लगाकर शत्रुओं के भी साथ रहूंगा,
मैं खास था,खास हूं,और खास रहूंगा ।
जीवन जैसा भी है मेरा,
संतोष ही महाधन है मेरा।
घोर दरिद्रता,अभाव में भी न उदास रहूंगा,
मैं खास था,खास हूं,और खास रहूंगा ।
बड़ी हैसियत से क्या लेना-देना,
खालूं, खिला दूं प्रभु बस इतना दे देना।
मुस्कुराता अपनी झोपड़ी के पास रहूंगा,
मैं खास था,खास हूं,और खास रहूंगा ।
श्रेष्ठ बन जाने की तमन्ना नहीं,
बिसात भूलकर जीवन हमें जीना नहीं।
आसमां बनकर भी ज़मीं के साथ रहूंगा,
मैं खास था,खास हूं,और खास रहूंगा ।
हाथों मेरे ना कोई बुराई हो,
कुछ हो अगर तो किसी की भलाई हो।
यथाशक्ति दान धर्म पूण्य की चाह रखूंगा
मैं खास था,खास हूं,और खास रहूंगा ।
'शर्मा धर्मेंद्र'