अनुपम चतुर्वेदी
कमअक्ल होना कोई गुनाह नहीं,
पर एहसास - ए - महरूम न बन।
तुम्हें क्या पता ? कैसे बीतते हैं लम्हे,
किसी की बद्दुआओं का मजमून न बन।
तशरीफ़ फरमा तू बड़े शौक से जालिम,
किसी की महफ़िल में ख़ाक-ए-शुकून न बन
रूह से नाता है बहुत, पाक मुहब्बत का ,
जिस्मानी रिश्तों का पैगाम-ए-कारकुन न बन।
तेरे खुतूत को अब भी सम्हाल के रक्खा है,
दीदार-ए-यार का तौफीक-ए-जुनून न बन।
एहतराम से जिन्दगी बसर हो साहिब
नापाक इरादों का,खामखां हुजूम न बन ।
अनुपम चतुर्वेदी, सन्त कबीर नगर, उ०प्र०
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