ऋतु बसंत
के साथ-साथ
आया मधुमास ।
धुंध कोहरे
की छाँट-छाँट
छाया उल्लास।
इतराती
सरसों फूली फूली
हँसती बिंदास ।
फूलों की
कलियाँ खिली खिली
बिखराएँ उजास।
सूरज की
किरणें रेशमी-रेशमी
करें गुंजार।
लो
आया मधुमास
छाया मधुमास ।
मेरा मन
देखो चहक-चहक
गाए स्वपनराग ।
कर्तव्य पथ
पर डटे-डटे
गाओ मल्हार ।
पहनेगी
तेरी बेटी लाडली
सफलता का हार ।
दहकते
पलाशों के संग संग
छूएगी वह आकाश ।
ऋतु बसंत
के साथ-साथ
आया मधुमास, छाया मधुमास।।
महिला सशक्तिकरण
महिला दिवस
जरूरत क्यों पड़ी ?
महिला सशक्तिकरण
क्यों हैं गंभीर प्रश्न ?
सुनो समाज ,
तुम ही हो दोषी ।
करते रहे शोषण
आधी आबादी का ।
जाग गई
है आज की नारी ।
कमर कस
खड़ी रणभूमि में ।
यह युद्ध
है अस्मिता का ।
बनानी है
पहचान उसे ।
अब कदम
पीछे नहीं हटाएगी ।
बनकर सशक्त
परचम वह फहराएगी ।
नहीं पड़ेगी
जरूरत महिला दिवस की अब ।
हर दिन होगा
उसका ही दिन !!
हर दिन होगा
उसका ही दिन !!
ये कहाँ आ गए हम !
कैसा समय आया है
आदमी देखो
पहुँच गया है चाँद पर!
खुद ही देखता अपना अक्स।
परंतु
नहीं पहुंच पाता है
अपने ही
सगे भाई के दरवाजे तक।
क्योंकि नहीं है यह उसका लक्ष्य !
याद है
मुझे पिता का वो
दो कमरे का घर
रहते थे
हम चार भाई उसमें मस्त !
कमियां थीं]
भूख थी, गरीबी थी,
मजबूरियां भी थी बेशुमार
परंतु नहीं थे हम उनसे त्रस्त !
आज देखो
कैसा समय आया है
दो कमरों
की जगह, छः कमरों का
महल हमने बनाया है।
उसमें पैसा है]
शानो शौकत है]
हर सुविधा है बेशुमार
पर हो गए हैं हम पस्त !
दो कमरों में
रहते थे हम चार भाई
परंतु
छः कमरों में
भाई तो छोड़ो
माता पिता के लिए भी जगह नहीं है भाई !
प्रगति की दौड़ में
कहाँ आ गए हैं हम
भावना क्यों हो गई है अस्त !
उठती है
हूक] हृदय में,
सिर उठाती है
एक आस मन के कोने में
कोई बदल दे ये सब
फिर से
बहने लगे] वो निर्झर
अपनेपन का स्नेहिल दरिया !
परंतु
अहम का फन
नहीं उठाने देता वो
पहला कदम
जो जाता है भाई के द्वार की ओर !
अपने ही
अहम से हार गए हैं हम
हो रहे हैं त्रस्त] हो गए हैं पस्त !
ये कहाँ आ गए हैं हम!!!!
नीलम राकेश
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