श्रीकांत यादव
माना चौडी सड़कें नहीं यहाँ हैं,
फिर कोलाहल और शोर नहीं है |
महल अटारी के दर्शन कम हैं,
किन्तु मानवता कमजोर नहीं है ||
ले बहे पवन प्रेरणा बागों से,
आवश्यक जीवन रस फसलों से |
द्वार खड़े वृक्ष शीतलता दे जाते,
है राहत प्रदूषण के मसलों से ||
निर्द्वद्व रजनी है निस्तब्ध यहाँ,
ले करवट सोती शांत चुपचाप |
यहाँ धमाचौकड़ी चित्कार नहीं है,
सुनाई पड़ती है स्पष्ट पदचाप ||
अंचल पूर्व के बाएं कोने से,
बालारुण की लालिमा छाती |
लाल दिशा कर मुदित ज्योति से,
दिनकर की रक्तिम प्रतिमा आती ||
झिलमिल झिलमिल दिशा दमकती,
सूरज का आभामण्डल सजता है |
मंदिर में बजते घंटा घडियालों से,
हुआ सवेरा ऐसा लगता है ||
चांदी सी दमके तुहिन तृणों पर,
खग कलरव से बाग वन चहके,
शीतल मंद समीर बहने पर,
चहुंदिश सुगंध मह मह महके ||
कुटुंब भावना और भाई चारा ,
नगरों से अभी मजबूत यहाँ |
शिक्षा स्वास्थ्य आर्थिक संसाधन,
हैं यत्र तत्र अभी सर्वत्र कहां ||
दमित इच्छाएं उत्साहित भाव से,
भरण पोषण का है पुष्ट विचार |
न छल कपट न दंभ द्वेष भावना,
राजनीति परस्त है सुंदर व्यवहार ||
अलसाए मौसम सी जीवन शैली,
मंद मंद पग धर आगे बढती है |
नित्य निमित्त कृषि कर्म के,
जीवन जिजीविषा से लडती है ||
उदासीन जीवन का अल्हणपन,
फक्कड स्वभाव कुछ अलमस्त हैं |
यदुवंशी मस्ताए जीवन पथ पर,
अपने नियत कार्यों में व्यस्त हैं ||
श्रीकांत यादव
(प्रवक्ता हिंदी)
आर सी-326, दीपक विहार
खोड़ा, गाजियाबाद
उ०प्र०!