नोएल लोरेंज़
तुमसे मिलना चाहा ये कोई खता था क्या,
दिनभर नाराज़ थी मुझसे, कोई अदा था क्या।
ये तेरी बदमिज़ाज रहना, यूं तड़पाना,
इन पहली मुलाकातों का प्रथा था क्या।
उस दिन जब मिले, कुछ दुखी दुखी सी थी,
बोल दे ना मुझे, कोई व्यथा था क्या।
तेरी हाथों को कंगन खनकती रही,
सुनके जागा था रातभर, उपकथा था क्या।
आज तू बता भी दे कलकत्तावाले से,
क्या उससे ज़्यादा कोई तुझे चाहता था क्या।
वो तेरी मुस्कुराहट के पीछे भागना याद है,
यहां तो तेरी अदा की बात कह रहे थे।
तेरे घर के दरवाज़े सारे बांध ही मिले आज तक,
हम तो बस मिलने की कोशिश में रह रहे थे।
तेरी गली तेरा पता ढूंढने निकला था,
तो हमसे हमारी नाम पूछे जा रहे थे।
क्या मालूम, नाम से किसे क्या मतलब था,
हम तो बस दर दर ठोकर खा रहे थे।
मंसूब मिलने की टूट गया तेरे शहर में,
ये दिल था, लूट गया तेरे शहर में।
तहज़ीब-ओ-सका़फ़त कहती रही तुझसे दूर जाऊं,
दिल-ओ-जां कहती रही तुझपे मिट जाऊं।
कहते है लोग मैं शायर नहीं हूं,
उन्हें क्या खबर मैं लहर नहीं हूं ।
मैं तो फिर रहा था दरबदर अरसों से,
क्या उन्हे खबर के मैं पहर नहीं हु।
*© Noel Lorenz (नोएल लोरेंज़)*
वे एक प्रकाशक है। उनका ३७ किताब विश्व रिकॉर्ड कर चुके है।
वे भारत का प्रकाशक है जो लेखकों का विश्व कप यानी वर्ल्ड कप आयोजन करा चुके है दो बार - अप्रैल और मई २०२१ में। उनके प्रकाशन का नाम नोएल लोरेंज़ हाउस ऑफ फिक्शन (एन एल एच एफ) (NLHF) है। वह अंतराष्ट्रीय स्तर पे किताब छपवा चुके है। एंथोलॉजी, सोलो बुक्स, नोवेल, छोटे कहानियां सब की किताब छपवाते है। वे NLHFIYW RADIO भी चलाते है।
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