दीपिका चौहान
आज आंसा भी आसमां लगते हैं,
दुःख से भरे दरिये किनारे लगा करते हैं।
बैठ जाता है मन यह सोंच सोंचकर,
घुटन में सांस भी लेना हो जाता है आरमा।
जो थे कभी अपने लही वही करीबी लगा करते हैं,
नज़दीकियां जो निभाते थे, कभी वही पराये लगते हैं।
आज आंसा भी आसमां लगते हैं,
दुःख से भरे दरिये किनारे लगा करते हैं।
मंजिल ये मेरे धुंधलाते नज़र आते हैं,
दिन नहीं गुजरते कमी में जिन्दगी गुजरने की बात किया करते हैं।
आज आंसा भी आसमां लगते हैं,
दुःख से भरे दरिये किनारे लगा करते हैं।।
दीपिका चौहान,
जशपुर छत्तीसगढ़।।