अनुपम चतुर्वेदी
बता दो घटा काली कब तक ठहरना है,
ऋतु आ गई मतवाली,कब तक बरसना है।
सप्ताह भर से रिमझिम रिमझिम फुहार है,
कब होगी गागर खाली,कब तक उमड़ना है।
आम पकने पर आमादा,सब्जियां सड़ रही हैं,
कब निकेलेगी धूप ? अभी कब तक सिहरना है।
हरियाली की चादर ओढ़े धरा लगे अति प्यारी
मखमली विछौने पर,कब तक विचरना है।
पेड़ों पर कोयल कूक रही है दादुर टर-टर बोले,
खिल उठी चमेली,कहो कब तक महकना है।
अनुपम चतुर्वेदी
, सन्त कबीर नगर, उ०प्र०
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