रंजना बरियार
मौन है शक्ति अदम्य,
मौन है भक्ति अनन्य,
तम के धुँध में निरन्तर
विलुप्त हो रहे ख़्यालों को
कालांतर में मौन साधना
कर देती है उजागर!
करती है यही प्रेरित
दरार पड़ते उन ख्याली
महलों की तुरपायी !
मौन है अदम्य शून्य,
यही है नभ सा विस्तार!
मौन है शांति,वाचाल भी,
यही आवाज़ विहीन
कथा शिल्पकार होता!
श्रोता धुँध जब हो जाता,
तब मौन निरर्थक भी हो जाता!
मौन है अन्तर्मुखी दशा,
जो शब्दों के विन्यास
में उलझा होता!
समाधान के प्रयास में,
अंदर ही अंदर ये
गुमराह भी हो जाता!
मौन साधना के उपरांत
उपजे शब्दों के विन्यास का,
होता है अगर तार्किक इस्तेमाल,
दे सकते तब ये मसलों के
सम्यक् समाधान!
पर नितांत मौन कर देते हैं
रूख गुमराह की ओर!
गुमराह होकर मनुज
समुदाय से पृथक
एकान्त भोगी हो जाता !
सुकून के वजाय अक्सर वो
आपदाओं में खुद को घिरा पाता!
परिणाम,अवसाद-कुंठाग्रस्त
जीवन उपहार में मिल जाता!
अतिशय बेमक़सद मौन निर्रथक,
मक़सद का मौन सदैव सार्थक!
स्वरचित