नारी अस्मिता

 


नीलम राकेश 

मत बनने दो 

मुहावरा, 

नारी अस्मिता को ।


बनो तुम, 

पहचान 

नारी अस्मिता की । 


गृहस्थी की 

गाड़ी, 

तुम चलाती । 


ट्रेन, जहाज 

तुम ही 

तो उड़ाती हो ।


फिर 

क्यों तुम 

अबला कहलाती हो ?


पहन कर 

खाकी 

करती रक्षा सबकी ।


खेलों में 

मेडल की 

करती बरसात । 


सीमा पर 

कंधे से कंधा मिला 

रहती तैनात । 


नारी, 

तुम ही हो 

नारी अस्मिता की पहचान ।


नीलम राकेश 

610/60, केशव नगर कालोनी 

सीतापुर रोड, लखनऊ 

उत्तर-प्रदेश-226020, neelamrakeshchandra@gmail.com

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