गिरिराज पांडे
लगी सावन की झड़ी
श्रृंखलाएं छू रही है बादलों को चूम कर
देख तू भी बादलों को भावना में डूब कर
लालिमा से युक्त शिखरें सूर्य की लाली लगी
इंद्रधनुषी रंग खिला है लगी सावन की झड़ी
बादलों का झुंड भी मडरा रहा है आसमां पर
फाहा हो जैसे रुई का उड़ रहा आकाश पर
जो अभी तक शौक से नभ में चमकते थे सितारे
घोर घटा घिरने से घिर गए हैं वे बेचारे
देखते ही देखते बादलों ने हुंकार मारी
चमक पड़ी बिजली यहां पर गर्जना जोरों से भारी
देखने में ही मजा था देखता था दूर तक
देख कर ही मन भरा था भावना में डूबकर
अब बरसते तब बरसते मन प्रफुल्लित हो रहा था
एक एक बूंद से शुरू सिलसिला ए हो रहा था
होने लगी घनघोर वर्षा तालाब सब भरने लगे
आवाज आयी मेढको की जुगनू चमचमाने लगे
सन सनाती आवाज थी अनगिनत जीवात्मा की
पानी में भी आवाज थी हवाओं के टकराव की
हरियाली अब छा गई मौसम सुहाना हो गया
दौड़ पड़ी खुशियों की लहरें मन प्रफुल्लित हो गया
अच्छा लगता है!!
सावन के महीने बादल छाना अच्छा लगता है
गीत गजल कजरी का सुनना अच्छा लगता है
काले मेघ बरसते हो जब घोर गरजना होती हो
रह-रहकर बिजली का चमकना अच्छा लगता है
काले घने बादलों में जब सांझ लालिमा होती है
सौंदर्य भरा आभा मन्डल अच्छा लगता है
होंठ गुलाबी चेहरे पर फूलों की हंसी जब खिलती है
नैनों से तेरा बातें करना अच्छा लगता है
हजार कमी हो मुझ में लेकिन खूबी ही देखो हरदम
तेरी हर खूबी सुनना मुझे अच्छा लगता है
दुनिया से नफरत छोड़ो तुम प्यार का गीत सुनाओ
तेरा हर एक नगमा सुनना अच्छा लगता है
जब आती तेरी याद मुझे यादों में तेरे डूबा हूं
तेरा सपनों में आना मुझको अच्छा लगता है
मुस्कान तेरी बातें सुंदर-सुंदर तेरे हैं घने केश
चांद के ऊपर काली घटा का पहरा अच्छा लगता है
रहकर के बिजली जैसा अंग जो तेरा चमकता है
चमक उठी जब बिजली दिल में अच्छा लगता है
हमको तो अब आसमान भी एक बिछौना लगता है
जडा सितारा देख बिछौना अच्छा लगता है
रात सुहानी बूद भरी मधुमय कोकिल सा लगता है
घोर घटा घनघोर देखना अच्छा लगता है
बाग में झूले पड़े हुए चहु ओर गीत की गुंजन है
गुंजन भंवरों का जुगनू चमकना अच्छा लगता है