हेमलता शर्मा 'भोली बेन' की कलम से



जरा धीरे आन दे

जरा धीरे आन दे, जरा धीरे आन दे...


आओ सगला हूं सुणऊं, 

तब सबके या गाथा, पाछो अय ग्यो हे करोनो, 

कय रया म्हारा काका ।

जरा धीरे आन दे, जरा धीरे आन दे...


सुदरी जाव भारत वाला, 

योज निवेदन छोटो, 

घर में रीजो हाथ धोजो, 

नी तो लट्ठ पड़ेगो मोटो।

जरा धीरे आन दे, जरा धीरे आन दे...


कोरोना के हराने की सबने मन में ठानी,

सोशल डिस्टेंसिंग अपणावो,

या ज बात हे केणी,

जरा धीरे आन दे, जरा धीरे आन दे...


सम्हली जाव भारत वाला,

तीसरी लेर को सदमों मोटो,

कोराना को टीको अय ग्यो,

सगला लगवय लीजो ।

जरा धीरे आन दे, जरा धीरे आन दे...

        

मालवी दिवस मनावां


इनी कोरोना का बीच,

कई नवो बरस मनावां ।

घरे रय ने अपण सब तो,

कोरोना के दूर भगावां ।।


अपणी भारतीय संस्कृति से,

नवीपीढ़ी के रूबरू करावां ।

गुड़ी पड़वा को दन चौखो,

मालवी दिवस रूप में मनावां ।।


अपणी संस्कृति सनातन,

इके आखा जग में फैलावां ।।

चैत्र नव संवत्सर ज अपणो,

या बात नाना-मोटा सबके समझावां ।।


मां अम्बे से करां प्रार्थना, 

कोरोना के धूल चटावां  । 

घरे रय के अपण सब तो,

कोरोना के भगावां ।।


मालवा का लोगोण अपण,

कसे मन के समझावां।

पण मास्क पेरनो घर में रेणो

लोगोण की जिनगी बचावां।।


समय कठिन हे संकट मोटो,

संयम ने समझदारी दिखावां ।

इनी करोना का बीच,

कई नवो बरस मनावां ।।


               स्वरचित

          सुश्री हेमलता शर्मा

              'भोली बेन'

           इंदौर,मध्यप्रदेश

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