ढलती सांझ की बेला में..

 


उषा शर्मा त्रिपाठी

इस ढलती सांझ की बेला में मैंने भी दिल की दहलीज पर आशा का एक दीप जलाकर रखा है, 


मेरे खयालों में रहती हो तुम मेरी सांसों में बसती हो पर कभी मेरे रूबरू नहीं होती हो ऐ जिंदगी! 


ढलते रहे अरमान मेरे इस ढलती हुई सांझ के साथ और रोती रहीं रातें मेरी ओस की बूंदों के साथ, 


इंतेहा हो गई तेरे बेइंतहा इंतज़ार की अब तो आकर मुझे को अपने गले से लगा जा ऐ जिंदगी! 

                     

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