रश्मि अग्रवाल
पिता बनना सरल नहीं होता चुप रहकर जो जरूरत जान लेता वो पिता होता और सपने बच्चे देखते पर पिता उनमें प्यार का एहसास तब होता है, जब स्वयं पिता बनकर जिम्मेदारियों का बोझ उठाना होता है।
माँ जीवनभर भोजन बनाती है पर पिता व्यवस्था करता है और पिता कितने भी यश-वैभव में जीवन जीता हो पर दिल से यही चाहता है कि लोग कहें देखो उसका पिता जा रहा है क्योंकि पिता बच्चे की वह ताकत है जो मूक रहकर भी बच्चे की जरूरत को समझ लेता पर दुःख किसी से साझा नहीं करता। इसलिए पिता को कठोर और माँ को कोमल मानते हैं। पर बच्चे को नैतिकता का पाठ, पिता ही पढ़ाते हैं और दुनिया से तालमेल बिठाने के लिए परिपक्व बनाते हैं। बेटा थक कर सो जाता है पर सुबह उठकर जब देखता है, तब थके हुए पिता काम पर जा रहे होते हैं, पर वो बेटे से नहीं कहते मैं थका हूँ, एक मुस्कुराहट देकर चले जाते हैं। पिता बेटे के जीवन का वो आधार है जो चाहता है कि उसका बेटा उससे अधिक नाम करे, बेटा ही क्या बेटी का गरूर होते हैं उसके पिता और वो अपने जीवन साथी में पिता का ही अक्स देखती हैं।
तात्पर्य यही कि पिता कुछ खास होता है क्योंकि वो दुनिया का सबसे ताकतवर इन्सान होता है और वसीयत के साथ-साथ ऐसी नसीहत दे जाता है जो ठोकर लगने पर बच्चे को उठाती और पुनः खड़ा होने की ताकत देती है।
रश्मि अग्रवाल
नजीबाबाद
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