महिला काव्य मंच (रज़िo) दक्षिणी दिल्ली इकाई महिला काव्य गोष्ठी गूगल मीट पर सफलता पूर्वक आयोजित हुई|
गोष्ठी की अध्यक्षता 'महिला काव्य मंच' की दक्षिणी दिल्ली इकाई की संरक्षक सुश्री निर्मला देवी जी द्वारा की गई।
गोष्ठी का संयोजन एवं संचालन सुश्री इंदु मिश्रा'किरण 'जी द्वारा किया गया।
आमंत्रण पत्र सुश्री विजय लक्ष्मी शुक्ला जी द्वारा तथा कोलाज सुश्री पुष्पा सिन्हा जी द्वारा बनाया गया।
कार्यक्रम का शुभारंभ सुश्री श्यामा भारद्वाज जी की सरस्वती वन्दना
हे शारदे मां, हे शारदे मां
अज्ञानता से हमें तार दे मां 🙏
के साथ हुआ।
तदोपरांत दक्षिण दिल्ली इकाई की कार्यकारणी सदस्य सुश्री इंदु मिश्रा"किरण"जी ने अपने चिरपरिचित अन्दाज में गोष्ठी का सफलता पूर्वक अनुशासित ढंग से संचालन व संयोजन किया|
सभी कलमकाराओं ने आशा और प्रेम से सराबोर अपने अपने अंदाज में काव्य प्रस्तुति की ,इस विकट समय में किसी ने प्रेम की बारिश की तो किसी ने स्त्री चरित्र की व्याख्या तो कुछ ने बेटी को पापा की परी तो कुछ ने इसे कोख में भ्रूण हत्या के पाप से बचाते हुए एक मां द्वारा इस संसार में लाने की बात कही।
सुश्री विनय पँवार जी(उपाध्यक्ष,दक्षिणी दिल्ली महिला काव्य मंच) ने विधिवत सरंक्षिका सहित सभी कलमकाराओं का स्वागत व आभार व्यक्त करते हुए सभी के सहयोग के लिए धन्यवाद प्रेषित किया🙏
प्रथम प्रस्तुति के लिऐ सुश्री वर्षा शर्मा जी को आमंत्रित किया गया।
"कुछ गीत, गज़ल आज सुनाते है,
चलो हम आंसूओं के आरजू को सरगम बनाते है"
से अपना काव्य पाठ आरंभ किया,आज भ्रूण हत्या एक ज्वलंत विषय है इसी विषय को उठाते हुए वर्षा जी ने अपना विचार अपनी कविता के माध्यम से पेश किया।
"न चाकू की धार, न चले कोई औजार,
वह भी तो जन्म ले,लड़कियों का भी जन्म हो"
फिर सुश्री प्राची कौशल जी को मंच पर आमंत्रित किया गया,प्राची जी ने बहुत ही खूबसूरत अंदाज में,मुस्कुराते,शरमाते हुऐ अपना प्रेम का गीत सुनाया और मंच पर उपस्थित सभी को अपने गीत के माध्यम से "प्रेम की बारिश" में भिगो दिया,जी हां गीत का शीर्षक -- प्रेम की बारिश
"आज भी प्यार की बारिश होगी,
मेरे आंगन में फिर बारिश होगी,
उनके आने की खबर आई है,
दिल में अरमान कई लाई है"
इस बारिश के बाद सुश्री पुष्पा सिन्हा जी को मंच पर आमंत्रित किया गया जो अपने साथ पुरवाई हवा का एक झोंका ले आई तथा महकती प्रकृति के संग मन को गुदगुनाने वाला भीगा भीगा मौसम भी ले आई।
शीर्षक -- मै ये समझती हूं।
"यह चलती हुई पुरवइया,
यह भीगा भीगा मौसम,
ये फूलो की खुशबू,
ये तितलियों और शबनमो का मौसम"
के द्वारा मंच पर प्रकृति को छटा बिखेर दी और पूरा मंच इस बारिश में भीग गया।
तदोपरांत सुश्री इंदु मिश्रा जी द्वारा चंद खूबसूरत पक्तियों से सुश्री सीमा अग्रवाल जी को मंच पर आमंत्रित किया गया,सीमा जी ने स्त्री की उन्मुक्तता को आज भी समाज स्वीकार नहीं करता,क्यों? जैसे सवाल खड़े किए।
हमारे देश में,समाज में पैदा हुई चंद उन्मुक्त स्त्रियों का नाम ले उदाहरण द्वारा अपनी बातो को ,इस संजीदा विषय को कविता के माध्यम से समझाया,स्त्री के लिए समाज का ये दोहरापन हरगिज स्वीकार नहीं है।
शीर्षक -- उन्मुक्त स्त्री
"उन्मुक्त स्त्रियाँ सुहाती नही है,किसी को भी,
न समाज को, न परिवार को और न ही पति को,
क्योंकि ये बोलती है,ये समझती है,
इन्हे विरोध करना आता है,इन्हे झुकना नहीं आता"
सुश्री सीमा अग्रवाल जी की इस संजीदा प्रस्तुति के बाद मंच पर सुश्री श्यामा भारद्वाज जी प्रेम और भक्ति के रस में डूबी अपनी रचना व गीत ले कर मंच पर उपस्थित हुई।
आते ही उन्होंने आवाज दी"दिल के हर दरवाजे खिड़की खोलती है,मुहब्बत हो तो आंखे बोलती है"
फिर सभी को प्रेम नगर वृंदावन ले गई।
शीर्षक -- वृदावन की सैर
रे मन चल वृंदावन धाम,
विराजे जहां राधिका संग श्याम"
और सभी को झूमने के लिए मजबूर कर दिया।
इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुऐ मंच पर श्रृंगार रस का रसापान कराने हेतु मंच पर सुश्री स्नेह लता जी का आगमन हुआ।
कैसे नायक और नायिका पहली बार मिलते है उस मिलन का बड़ा ही सजीव चित्रण किया गया स्नेह लता जी द्वारा।
"उस प्रथम मिलन की स्मृति हर्षित कर देती है,
मन मंदिर में आज भी वह छवि हर्षित कर देती है"
तदपश्चात महिला काव्य मंच उत्तरी दिल्ली की उपाध्यक्ष सुश्री मंजू शाक्या जी को मंच पर आमंत्रित किया गया।
"सावन में रेगिस्तान भी चहक जाते है,
ऐ दोस्त न बदनाम कर प्यार को,
इस उम्र में हर लोग बहक जाते है"
अपनी कविता में शब्दो का चयन बड़े ही सुरुचिपूर्ण किया सुश्री मंजू जी ने,,,
"कैद मन में मुहब्बत का क्षण हो गया,
दिल की दुनिया में तेरा भ्रमण हो गया,
वैद्य कोई नही नब्ज को पढ़ सका,
तेरी चाहत का जब संक्रमण हो गया"
अपनी बातो को बड़ी ही सहजता से,बड़े ही हल्के ढंग से कह दी अपनी इस कविता में "इस दुनिया में हमसे बढ़ कर कौन अमीर होता,सजन जी अगर तुम सुनते मेरी पीर"
क्रमानुसार सुश्री इंदु जी द्वारा मंच पर पश्चिमी दिल्ली की उपाध्यक्ष सुश्री उर्मिल गुप्ता जी को आमंत्रित किया गया।उर्मिल जी अपने चिरपरिचित अंदाज में आते ही बोली की "गर्व से कह सको की मेरा जीवन था मस्त"
कैसे एक बार जब उन्हें खून की जरूरत पड़ी और तब एक कवि महाशय जी का खून चढ़ा दिया जाता है फिर उनके साथ क्या क्या घटना,दुर्घटना घटित होती है इसको उन्होंने अपनी हास्य रचना में मंच को बताई।
शीर्षक -- दर्द बना दुआ
"दर्द कैसे बना दुआ,राज की बात बताती हुं,
आइए आप सभी को,वो किस्सा सुनाती हूं"
क्रमानुसार,पश्चिमी दिल्ली की महिला काव्य मंच की अध्यक्ष सुश्री लतिका बत्रा जी को मंच पर सुश्री इंदु जी द्वारा आमंत्रित किया गया,लतिका जी द्वारा बताया गया की हर रिश्ते में एक संवाद बेहद जरूरी होता है तभी रिश्ते फलते फूलते है।
शीर्षक -- संवाद जरूरी है
"यूं ही कभी कभी बात कर लिया करो मुझसे,
तुम्हारी बातें मुझे अपने होने का अहसास कराती है"
बहुत ही भावपूर्ण प्रस्तुति पेश की गई सुश्री लतिका जी द्वारा।
इसी क्रम में हमारे बीच मध्य दिल्ली से महिला काव्य मंच से डॉक्टर भूपिंदर कौर जी को आमंत्रित किया गया।
उनके द्वारा उनकी रचना"पापा की परी" जो प्रसिद्धि की ओर बढ़ रही है पेश की गई,एक बेटी जब बहू बन ससुराल जाती है तो वो कैसे पल भर में खुद को बदल लेती है और इसी बदलाव को बड़े ही खूबसूरत अंदाज में भावनाओ को सुंदर शब्दो में पिरो कर डाक्टर भूपिंदर जी ने मंच पर प्रस्तुत किया।
शीर्षक -- पापा की परी
"पापा की परी,ससुराल आते ही धीरे धीरे सब कुछ सीख जाती है"
"बच्चों की परवरिश करते हुए,
उनके सपनों के पीछे भागते हुए,
उनकी खुशियों को पूरा करते हुए,
उनके मनपसंद जीवनसाथी के साथ उसका घर बसाते हुए,"
सभी मंचासिन लोगो ने इसमें खुद को,अपनी बेटियो को ढूंढने की कोशिश की।
इस भाव पूर्ण प्रस्तुति के पश्चात सुश्री हरेंद्र चंचल वशिष्ठ जी की कविता जो आज के परिवेश में इंसानी रिश्तों की परत दर परत खोलती नजर आती है उनमें आई कई तब्दीलिया बयां करती है।"गांव,गांव के जैसा बचा कहां है कोई,अब इस शहर में कोई अपना जैसा रहा है कोई"
हमारी जिंदगी का एक ये भी पहलू है की,,,
"वक्त के साथ उनके लहजे कड़े हो जाते है,
जब बच्चे एक उम्र से बड़े हो जाते है"
इस खूबसूरत कविता के बाद दक्षिणी दिल्ली महिला काव्य मंच की सचिव सुश्री विजय लक्ष्मी शुक्ला जी ने अपनी प्रस्तुति दी,जिसमे उन्होंने एक बेटी ब्याह के बाद जब ससुराल से पहली बार अपने मायके आती है तो अपनी जननी,अपनी मां से कुछ चुभते हुऐ प्रश्न पूछती है दरअसल ये प्रश्न वो सभी मांओं से पूरे समाज से पूछती है और अपने पालन पोषण पर भी सवाल खड़े करती है।
"लाल चुनर में मां तूने मुझे गुड़िया सा सजाया था,
डोली में मुझको विदा किया,एक सुंदर स्वप्न दिखाया था"
अभी तक जो पूरी गोष्ठी का सफलता पूर्वक संचालन करती आ रही थी सुश्री इंदु मिश्रा 'किरण ' जी को सुश्री विनय जी द्वारा मंच पर आमंत्रित किया जाता है।
सुश्री इंदु जी ने अपनी सुमधुर वाणी में लयबद्ध तरीके से एक गज़ल सुनाई व उसके एक एक शेर मंच पर बैठी सभी कलमकारों को कर चिन्हित करते हुऐ पेश की,,,
"मेरी बैचनिया बढ़ाता है,
मेरे ख्वाबों में जब वो आता है"
बेहद ही मुलायम गज़ल और उतनी ही मखमली आवाज में साथ में उतनी ही नजाकत से बयां की।
तदपश्चात,हमारी दक्षिणी महिला काव्य मंच की उपाध्यक्ष सुश्री विनय पंवार जी को सुश्री इंदु जी मंच पर आमंत्रित करती है।
मंच संभालते ही विनय जी अपने तेवर से सभी को परिचित कराती है"मुखर हूं मैं,प्रखर हूं मैं"
साथ ही सुश्री विजय लक्ष्मी जी द्वारा बेटी के पूछे गए प्रश्न अपनी मां से,उन प्रश्नों का उत्तर विनय जी ने अपनी कविता में अपने चिर परिचित अंदाज में दिया साथ ही आगे से कोई भी बेटी ऐसे प्रश्न न पूछे उसको इतना सबल बनाए हम और आने वाली पीढ़ियों को ऐसी शिक्षा और प्रेरणा दे की ये प्रश्न ही न उठे।
"जिस पल बैठी डोली में,
मां आई थी पास मेरे,
जिसे सदा प्रणाम किया मैंने,
वो हाथ जोड़ने लगी मुझे"
साथ ही माहौल को खुशनुमा बनाते हुऐ,सास बहू के रिश्तों को अपनी चुहलबाज़ी से अपनी हास्य कविता के माध्यम से उकेरा,,,,
शीर्षक -- एक यूनिट खून
"मेरी सास थी बीमार,
हम सब थे बेहाल"
गोष्ठी अब समापन की ओर बढ़ चली और अंत में हमारी दक्षिणी दिल्ली महिला काव्य मंच की संरक्षक सुश्री निर्मला देवी जी ने सभी रचनाकारों पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुऐ इस मंच की तुलना संत समागम के साथ की, कि जैसे संत समागम में सभी संतो का समागम होता है उसी तरह ये मंच भी सभी कवियत्रियो का समागम का काम करता है।
और अपनी सकारात्मक सोच से सभी को आवगत कराते हुए कहा की 'इस मंच से हम बहुत कुछ सीखते है '
आज की इस विषम परिस्थिति में सभी को बहुत ही धैर्य के साथ,आपस में सहयोग और प्रेम के साथ रहने को कहा"वक्त की आंधियों से मत घबराना"
अपना छोटा किन्तु गागर में सागर भरने जैसा काव्य पाठ किया,,,
शीर्षक -- मेरा गम मेरी अमानत है
"कहते है गम बांटने से हल्का हो जाता है,
लेकिन जब मैंने बांटना चाहा,
हर झोली गम से भरी हुई थी"
हमारी वरिष्ठ कलमकार वर्षा जी जिस दुख से गुजर रही है उससे आहत होते हुए सुश्री निर्मला देवी जी ने चंद पक्तियां सुनाई,,
"अभी न छूना,अभी जख्म बहुत ताजा है,
अभी अभी तो चोट लगी है,
धीरे धीरे जब जख्म भर जाएगा,
धीरे धीरे सहला देना,अभी नही,
अभी जख्म बहुत ताजा है"
निर्मला देवी जी ने सभी को सफल और अनुशासित गोष्ठी की बधाई दी।
दक्षिणी दिल्ली महिला काव्य मंच की उपाध्यक्ष सुश्री विनय पंवार जी ने विधिवत सारंक्षिका सहित सभी कलमकारों का आभार व्यक्त करते हुऐ सभी के सहयोग के लिए धन्यवाद प्रेषित किया🙏
इस प्रकार महिला काव्य मंच(राजि०) की दक्षिणी दिल्ली इकाई की जून 2021 की काव्य गोष्ठी,महिला काव्य मंच की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवम् दिल्ली प्रभारी श्री मति नीतू सिंह राय जी के समुचित दिशा निर्देशन में सफल एवं प्रभावी रही।