डॉ. गोरधनसिंह सोढा 'जहरीला'
बरखा ठण्डी पुरवाई साथ ला तू।
आके मोटी मोटी बूंदे टपका तू।।
बरखा ठण्डी पुरवाई साथ ला तू।
बरखा............ बरखा........
वसुंधरा तन में तपन उठी है।
चारों ओर जैसे अगन लगी है।।
बरस बरस के आग बुझाने तू।
आके मोटी मोटी बूंदे टपका तू।।
बरखा ठण्डी पुरवाई साथ ला तू।
बरखा............. बरखा..........
वन की कोयल कूक उठी है।
सबके मन में हूक उठी है।।
अमृत बरसा के प्यास बुझा तू।
आके मोटी मोटी बूंदें टपका तू।।
बरखा ठण्डी पुरवाई साथ ला तू।
बरखा.......... बरखा............
पशु पक्षी पादप शोर मचा रहे।
तुझे रिझाने वो गीत गाते रहे।।
सबका मन प्रफुल्लित कर जा तू ।
आके मोटी मोटी बूंदें टपका तू।
बरखा ठण्डी पुरवाई साथ ला तू।।
बरखा.............बरखा............
सब अच्छा होगा तेरे आने से।
घनघोर घटा संग बादल बरसाने से।।
जग उजाला करने बिजुरी चमका तू।
आके मोटी मोटी बूंदें टपका तू।
बरखा ठण्डी पुरवाई साथ ला तू।।
बरखा............बरखा...............
एक पीली शाम
हो गई पीली शाम, अब घर जाने दो ।
सैंया अपनी राम राम, अब घर जाने दो।।
हो गई पीली शाम, अब घर जाने दो।
पक्षी नीड़ को गए, पशुओं ने सम्भाली ठोड़।
सब घर जाने की, लगा रहे है होड़।।
निपटा खेत का काम, अब घर जाने दो।
हो गई पीली शाम, अब घर जाने दो।
सैंया अपनी राम राम, अब घर जाने दो।।
हो गई पीली शाम, अब घर जाने दो।
पूरी हो गई चाह, मा देख रही राह।
हमको यूं न छेड़ो, छोड़ दो मेरी बाँह।।
चला गया है घाम, अब घर जाने दो।
हो गई पीली शाम, अब घर जाने दो।।
सैयां अपनी राम राम, अब घर जाने दो।
हो गई पीली शाम, अब घर जाने दो।।
माफ कर दो आज, तोहे आती नहीं लाज।
हो गई ज्यादा देर, बापू की पड़ेगी गाज।।
सुन लो मोरे श्याम, अब घर जाने दो।
हो गई पीली शाम, अब घर जाने दो।
सैंया अपनी राम राम, अब घर जाने दो।।
हो गई पीली शाम, अब घर जाने दो।।
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डॉ. गोरधनसिंह सोढा 'जहरीला'
बाड़मेर राजस्थान