ईश्वर की उपस्थिति का आभास

 संस्मरण

डॉ पंकजवासिनी

इस अप्रैल ( 2021) में मेरा पूरा परिवार कोरोना ग्रस्त हो गया। पहले पति, फिर पुत्र और अंत में मैं! सबकी हालत खराब!! तीनों अलग-अलग कमरों में बेसुध पड़े हुए!!! कोई पानी देनेवाला भी नहीं! इस अशक्त अवस्था में ही मैं ईश्वर से गिड़गिड़ाती : *"प्रभु शक्ति दो"* और न जाने कौन सी शक्ति मुझे खींच किचन में ले जाती और मैं तीन तरह का काढ़ा बनाती, भांँप लेने के लिए गर्म पानी, दवा पति और बेटे को देती, (कोरोना ग्रस्त परिवार के लिए संस्था द्वारा भेजा) खाना दोनों के कमरे में पहुंँचाती और स्वयं भी खाती। फिर अपने कमरे में निढाल पड़ जाती। (अपनों से भरे शहर में कोई भी हमारी देखभाल के लिए नहीं आया)! 

21 अप्रैल को हकासी - प्यासी उल्टी चिरैया - सा मुँह बाये पति को बिस्तर पर पड़े हाँफते देखा तो अनायास ही प्रार्थना में हाथ उठ गए  : *"हे ईश्वर! रक्षा करो उनकी!! बच्चों को सनाथ रखना।"* *ध्यान में ईश्वर की मुस्कुराती छवि दिखी! और अगले ही दिन पति स्वयं उठकर कमरे से बाहर आए!* 22 अप्रैल को बेटे को बेसुध औंधे पड़े देखकर मन पीड़ा से कसमसा उठा। परमात्मा को फिर गुहार लगाई: *"भगवन! मुझे भले कुछ हो जाए, पर बच्चे का बाल भी बांँका न करना!"*


 बीमारी से जूझती... पति - पुत्र की सेवा करती 23 अप्रैल को मैं बिल्कुल बेसुध - निढाल! इसी तरह 3 दिन बीते! 26 की दोपहर 12:30 बजे मेरी बचपन की सखी रश्मिता का फोन आया। उसके साथ मेरे आत्मिक संबंध से सुपरिचित मेरे पति ने उसका फोन रिसीव कर औंधे पड़ी मुझ बेसुध के पास रख दिया और वह बोलती रही : *"उठो पंकज! अपना आत्मबल /जीवन शक्ति जगाओ! तुम्हें लड़ना ही होगा! तुम्हें जीतना ही है! पति को, बेटे को, माँ को याद करो! अपने सबसे प्रिय को याद करो!! प्रभु का स्मरण करो!! और मेरी निश्चेष्ट शिराओं में जैसे कोई हरकत हुई : *" हूँ! प्रभु कृपा करें!"* और *जैसे सचमुच कोई मेरा हाथ पकड़ कर दिनभर मुझसे बतियाता... मुझे बहलाता... यहाँ -वहाँ, न जाने कहाँ घुमाता रहा... नीम बेहोशी की हालत में !! और अंततः रात के 10:50 में मुझे होश आया!!! नहीं पता कि दिनभर मुझसे बतियाते - बहलाते हुए मौत का दरिया पार करने वाले वे परमात्मा थे या उनका कोई अंश!!!*


*डॉ पंकजवासिनी*

असिस्टेंट प्रोफेसर 

भीमराव अंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय

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