पंचचामर छंद
गीता पांडे अपराजिता
1समीर है बही यहां, लिए सभी हवा जहां।
सवाल पूछते सभी ,बता नहीं वही रहा ।
मचल रहे भ्रमर दिखे ,पराग से कली खिली।
सुवास खूब है मिली, महक रही गली गली।।
2 महान लक्ष्य को गहो, प्रवीर हो जई बनो ।
समीर सी सुभावना, विकास पंथ को जनों ।।
खिली -खिली सदा रहे , सुगंध -गंध भारती ।
चलो चले इसी धरा , सवांर जो सुधारती।।
3 चलो चले सभी वहाँ , समीर है बहे जहाँ।
करें विकास देश का ,नया नया गढ़े यहां।।
तुझे धरा पुकारती ,सुनो पुकार भारती ।
उठो जवान सारथी ,तुम्हें सदा दुलारती।।
4 जहां सुखी रहे सभी ,रहे नहीं दुखी कभी ।
मिले सदा सुहावनी ,समीर बहे खुशी सभी।।
रही धरा वसुंधरा ,दुलारती निखारती।
खिला पिला हमें सदा ,रही यहां सँवारती।।
5 सुकीर्ति देश की बढ़े, सदा प्रयास ये करो।
शहीद की कतार में ,सदा सुनाम भी धरो।।
सुधार नीति मान लो ,समीर रूख जान लो ।
नहीं कभी कपूत है ,सभी बने सपूत हो।
6जहां रहे वही करें ,विकास देश के लिए ।
मिले जहां समीर भी, प्रयोग आप कीजिए ।।
अनेक बार जन्म ले ,चुका सके न ऋण कभी ।
सपूत पूत भी मगर नहो सका उऋण अभी।।
गीता पांडे अपराजिता
रायबरेली उत्तर प्रदेश