गिरिराज पांडे
मैं तो गांव में ही रहकर
गांव से हर दम प्यार किया
प्रकृति प्रदत्त हवा जो मिलती
उसी में हरदम सांस लिया
नहीं तीब्रतम चाल मै देखी
चकाचौंध से दूर रहा
बांग्ला सुंदर नहीं मेरा
यहा कच्चा सा मकान रहा
ना देखा पार्क का कोना
फूलों की क्यारी देखी है
घर के चारों ओर महकती
मैंने फुलवारी देखी है
देखा नहीं चमकती सड़कें
अंधेरी गलियां देखी हैं
देखे नहीं शहर के कांटे
गांव की कलियां देखी हैं
सुखद हमेशा बीता जीवन
सपनों का संसार मिला
किसी के हिस्से शहर में आए
मेरे हिस्से में गांव मिला
बिल्डिंग की छाया नहीं मिली
वृक्षों का हरदम छांव मिला
नहीं भटकना अब शहरों में
सुंदर सा मुझे गांव मिला
गिरिराज पांडे
वीर मऊ
प्रतापगढ़