स्मिता पांडेय
बीच सफर से मुझे वापस मुड़ना पड़ा,
चुनौतियां सामने थी, मुझे लड़ना पड़ा ।
बिखर ही जाती तेरे जाने के बाद मैं,
जिम्मेदारियां सामने थी, संभलना पड़ा ।
आंधी ने बुझाने की करीं लाख कोशिशें,
दीया विश्वास का था तो जलना पड़ा ।
कुम्हार के चाक पर चढ़ने के बाद,
मुझे कितने ही रूपों में ढलना पड़ा ।
सच की पहचान को बचाने के लिए,
झूठ को फिर बेनकाब करना पड़ा ।
रहेंगी बहारें न सदा इस जीवन में,
फूल को भी शाख से झड़ना पड़ा ।
स्वरचित
स्मिता पांडेय लखनऊ