उदय किशोर साह
जिसे खोने का डर सताये
उसके लिये अब क्या रोना है
जो इक दिन निश्चित मिट जायेगा
संपंर्ष कर उसे क्यो पाना है
यौवन दौलत और जवानी
पानी की बुलबुले समान
चंद दिन की चमक चाँदनी
सब कुछ खो देता है ये जहान
जिन्दगी एक भूल भुलैया जैसा
कभी मिलाता कभी भुलाता
जिसे जीवन में साथ निभाना नहीं है
उसे पाने हेतु क्यों है ऊर्जा को लगाना
चार दिन की है ये चाँदनी
फ़िर हो जायेगा अमावश की रात
चार दिन की है ये जिन्दगानी
फिर मिल जायेगा कब्रिस्तान में वास
साँसों का आवन जावन है
ये तन भी नहीं है अपना
फिर क्यूं अभिमान है जग में
ये तन को है इक दिन मिट जाना
गुमान किस बात की करना है
कौन है इस जग में आपका अपना
अभिमान किस बात की है करना
सब है बस पल भर का सपना
क्यूं कर करूँ श्रृंगार यहाँ पर
जवानी इक दिन ढ़ल जायेगी
जो रूप बना है जग का कृत्रिम
वो पानी में गल जायेगी
ये महल ये शहर ये शोहरत
सब कुछ का छूट जाना तय है
जो शमशान तक साथ ना निभाये
डस पर गर्व क्यूं करना है
सब कुछ कुछ पल का है दिखावा
सब कुछ पल का सपना है
कोई साथ ना जाता है जग में
परिजन से भी विछड़ जाना है
लहरें आती है जाती है
साहिल खड़ा मुस्कुराता है
किस बात का गुरूर है प्यारे
लहरें पल में लौट जाता है
उदय किशोर साह
मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार
9546115088