ग़ज़ल



विद्या भूषण मिश्र "भूषण"

नहीं चाहता मैं तुम्हें भूल जाऊँ, मगर याद आकर रुला तो न दोगे!

ख़ुदा की कसम तुम बहुत याद आते, मेरी याद को तुम मिटा तो न दोगे!!

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बसा ली है नज़रों में सूरत तुम्हारी, धड़कता मेरा दिल तेरी धड़कनों से;

मगर ये मुझे डर सताने लगा है, मुझे तुम नज़र से गिरा तो न दोगे!!

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खिला तो दिया है चमन मेरे दिल का, मकीं बन के तुम उसमें रहने लगे हो;

यकीं तो दिला दो मुझे सिर्फ इतना, मेरे दिल को सहरा बना तो न दोगे!!

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चहकने लगी है निकल के क़फ़स से, मेरे दिल की बुलबुल खुशी के चमन में;

बता दो मुझे तुम कि सय्याद बन कर, उसे क़ैद में फ़िर बिठा तो न दोगे!!

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मेरी बन्द पलकों पे ठहरा हुआ है, मचलता समन्दर मेरे आँसुओं का;

सुना के मुझे तुम जफ़ा के फ़साने, मेरे आँसुओं को बहा तो न दोगे!!

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तिरे साथ मिल कर बनाया है मैंने, बहुत खूबसूरत सा इक आशियाना;

उमीदों का जो आशियाना बना है, उसे बेवफ़ा बन जला तो न दोगे!!

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ज़ुदा हो के तुम से नहीं जी सकूँगा, ग़मे हिज़्र में रो के मर जाऊँगा मैं;

अभी मिल गए हो मुझे इस जनम में, तो सातों जनम तक निभा तो न दोगे!!

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- *विद्या भूषण मिश्र "भूषण", 

बलिया उत्तरप्रदेश -*

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