लाज नहीं क्या तुम्हें कॅरोना
घूंघट के बदले में मुख पर
हमने डाला पट्टी खास।
ढीठ बने तुम घूम रहे हो
शर्म हया को छोड़कर आप।।
शर्म करो अपनी हरकत पर
जहाँ तहाँ तुम डोल रहे।
बिना बुलाये उचरिंगखल बन
जहाँ तहाँ तुम डोल रहे।।
यहाँ कमी क्या गिरगिट की
जो जब जैसे चाहे बदले रंग
तुम भी तो रंग बदलकर
उसके जैसे ही बदले रंग।।
उनके तो कोई धर्म नही हैं
जगह जगह बेच रहे ईमान।
क्या तेरी भी यही है श्रेणी
आका तेरे भी तो हैं बेइमान।।
शिक्षा पर तुमने घात किया
और किया बहुत नुकसान।
दो रोटी के अब लाले पड़ रहे
कैसे भरें अपना नुकसान।।
चुनाव का एक लहर चला है
फैल रहे तुम पग पसार।
जनता तो बेबस निरीह है
झेल रहा है तुम्हारा मार।।
खादी वाले को बस चिंता है
कैसे करे राज विस्तार।
चाहे पग में पट्टी बंधे या फिर
दाढ़ी के पीछे का वो राज।।
जल्दी ही कुछ सफेद पोश अब
जाने वाले हैं अपने ननिहाल।
तुम पीछे ही लग जाना फिर
लौट न आना अबकी बार।।।
श्री कमलेश झा
राजधानी दिल्ली