सुभाषिनी जोशी 'सुलभ'
वह वक्त आ गया इन्सान करले भलाई आज तो।
क्या है फा़नी जिन्दगी में करले कमाई आज तो।
नेकियाँ करते चलो नजदीक ही पड़ाव आएगा,
आ खत्म करलें भीतर की सारी बुराई आज तो।
बैठ मत सोंचे कि यह उम्र बैठी रहेगी सौ बरस,
इक पल का भरोसा नहीं भूल जा लड़ाई आज तो।
किसकी कब खबर बन जाए यह सुन-सुन के हैरां हैं,
दुवाओं की मिल्कियत बटोर मेरे भाई आज तो।
सारी बदियों को छोडकर चल रहबरी की राह पर,
उसकी अदालत में होगी मीत सुनवाई आज तो।
जिन्दगानी बस चार दिन एक दिन जाना है सबको,
पा ले उसके रहमोकरम करले बुआई आज तो।
मौत भी नासाज़ हो जाती यहाँ दुआ के सामने,
मिन्नतें करले यही बीमारों की दवाई आज तो।
सुभाषिनी जोशी 'सुलभ'
इन्दौर मध्यप्रदेश