!!मेरा हृदय उद्गार!!
प्रेम द्रवित ना हो जब दिल में
मुखड़ा क्या देखे दर्पण में
सुख देखें दूजे का कैसे
भरी हुई ईर्श्या जब मन में
राज छिपाकर दिल में रखें
भरी हुई है खोट जो मन में
जग ये सुंदर लगे भी कैसे
इच्छा के जो मोड़ है मन में
दान करे वह कैसे अब तो
पाने की इच्छा ही जो मन मे
आनंद कहां से मिले यहां
जब डूब गया भौतिकता में
अपनत्व कहां दिखता है
जब खंजर बसा हुआ दिल में
!!मेरा हृदय उद्गार !!
!सघन जांच जब हो जीवन में
निष्पक्ष रुप से कर्मों की
भेद उजागर हो जाएगा
मानव के करतूतों की
श्वेत रूप में मन के काले
छिपे हुए हैं जो जग में
करते हैं वह गलत काम
उषा के भरे उजाले में
बने हुए हैं यहां पुजारी
वह तो आज शराफत के
सिसक रही है छिपा के मुंह को
आज शराफत आंगन में
भरा हुआ है अहंकार
कितना मानव के रग रग में
रास रचाते कत्ल ओ करते-
करते ढोग शराफत के
जो रखवारे हैं मानव के
जिन पर ए जिम्मेदारी है
वही रचाए रास यहां पर
कितनी यह लाचारी है
हकीकत से कलम वाकिफ
यहां पर अब नहीं होती
स्वार्थ में डूब कर ही वह
अब चलाई जाती है
इतनी हिम्मत है किसकी
जो जान हथेली पर रखकर सच बोले
ऐसे लोगों को धमकियां दिलाई जाती हैं
!!मेरा हृदय उद्गार !!
लौट कर आओगे मुझसे मिलने यहां
मेरे मन को तो आसा दिला दीजिए
है अंधेरा भरा जो हृदय में मेरे
प्रेम का दीप दिल में जला दीजिए
तेरी आंखों से छलके जो मदिरा यहां
उसका रसपान मुझको करा दीजिए
जिस में डूबा रहूं उम्र भर ही यहां
ऐसी आंखों से मुझको पिला दीजिए
जिसकी ज्योति कभी भी न फीकी पड़े
ऐसी सम्मा तू मुझ में जला दीजिए
हो गई हो अगर मुझसे गलती कोई
मुझको उसकी यही पर सजा दीजिए
आज काली घटा का है पहरा यहां
चांद मुखड़े का अपने दिखा दीजिए
देख लूं तेरा रोशन सा चेहरा अभी
फिर तो चिलमन को चाहे गिरा लीजिए
पीलू आंखों से तेरी जो मदिरा यहां
अपनी पलकों को बेशक गिरा लीजिए
कोई शिकवा गिला या शिकायत नहीं
चाहे जिसको तू अपना बना लीजिए
तेरे चेहरे पे देखूं शिकन अब नहीं
अपने मन से ही तू फैसला कीजिए
!!मेरा हृदय उद्गार !!
मंजिल पाने को चलते रहना
धर्म हमारा होता है
लक्ष्य तो जीवन में सबका
मंजिल को पाना होता है
पा सकता है तभी हमेशा
अटल लक्ष्य जब होता है
बढ़ते चलना सदा ही पथ पर
कर्म हमारा होता है
मंजिल पाने की खातिर
पैर बढ़ाना पड़ता है
मंजिल मिल जाए तो मुझको
विश्वास जगाना पड़ता है
ऊपर जाने को हरदम
कष्ट उठाना पड़ता है
मिल जाए जिससे मंजिल
राहे सुगम बनाना पड़ता है
मंजिल पाने की चाहत में
लोग परिश्रम करते हैं
पाता मंजिल वही हमेशा
जो नित्य परिश्रम करते हैं
मंजिल को जाना मंजिल पाना
अलग-अलग सी बातें हैं
बढ़ते चलो सदा ही पथ पर
चाहे कितने कांटे हो
मंजिल मिल जाएगी जिस दिन
हर खुशियां मिल जाएगी
जीवन सफल तेरा होगा
दुख रात तमिश्रा छठ जाएगी
!!मेरा हृदय उद्गार !!
मैं तो गांव में ही रहकर
गांव से हर दम प्यार किया
प्रकृति प्रदत्त हवा जो मिलती
उसी में हरदम सांस लिया
नहीं तीब्रतम चाल मै देखी
चकाचौंध से दूर रहा
बांग्ला सुंदर नहीं मेरा
यहा कच्चा सा मकान रहा
ना देखा पार्क का कोना
फूलों की क्यारी देखी है
घर के चारों ओर महकती
मैंने फुलवारी देखी है
देखा नहीं चमकती सड़कें
अंधेरी गलियां देखी हैं
देखे नहीं शहर के कांटे
गांव की कलियां देखी हैं
सुखद हमेशा बीता जीवन
सपनों का संसार मिला
किसी के हिस्से शहर में आए
हिस्से में मेरे गांव में मिला
बिल्डिंग की छाया नहीं मिली
वृक्षों का हरदम छांव मिला
नहीं भटकना अब शहरों में
सुंदर सा मुझे गांव मिला
गिरिराज पांडेय
वीर मऊ
प्रतापगढ़