इंदु मिश्रा 'किरण'
निगाहों में कभी भरके मुझे अपना कहा होता
तो मुझको ज़िंदगी जीने का मक़सद मिल गया होता
सवालों के ज़वाबों में उलझती ही नहीं मैं तो
अगर इस जिंदगी का और कोई रास्ता होता
समुंदर से मिलन की चाह में नदिया जो सहती है
सभी वो दर्द पढ़ लेते जो लहरों पर लिखा होता
ज़माने के ये मयख़ाने नहीं हैं काम के मेरे
महक तेरी मेरी साँसों में भर जाती नशा होता
'किरण' की जिंदगी में नूर बन के तू समाया है
मोहब्बत गर तुझे होती तो हाल-ए-दिल पता होता ।
इंदु मिश्रा 'किरण'
नई दिल्ली