मां ! कैसे भूलूं तेरा आंचल?
ठंड और धूप से बचाता था,
ढक देती थी तुम मुझे,
जब कोई अपरिचित आता था।
तूम और तेरा आंचल
ख्याल रखते थे हरदम मेरा,
मेरे पास से तभी होते थे अलग
जब हो जाता था सबेरा।
बुरी नजरों से बचाने के लिए
तुम लगा देती थी मुझे काजल,
पनघट पर जल्दी जाकर
भर लाती थी जल।
नहीं भूल पाऊंगा मैं
मां! तुझे और तेरा आंचल
जब होती है तन्हाई,
अक्सर याद आती हो तुम,
याद आता है तुम्हारा आंचल।
विनोद कुमार पांडेय
शिक्षक (रा० हाई स्कूल, लिब्बरहेड़ी, हरिद्वार)