कवियत्री विमल सागर की रचनाएं

 

"बहते आँसू रूकती साँसें"

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कोरोना का नाम हो रहा

बहते आँसू थमती साँसें

बोल नहीं किश्त की साँसें

बोल सुने ना रिश्ते खत्म,


रोने के हाल चीत्कार सुने

ऑक्सीजन लम्बी कतार रही

शुक्रिया ईश्वर मौत नहीं दो 

त्राहि-त्राहि मची तबाही,


रोते परिजन अर्थी कंधा न कोई

नये ख्बाव धरे रह गये

कोरोनावायरस दर्द दे रहे

अपनों को हाल क्या कौन जाने,


शायद अर्थ अकेले ही जाना

भगवान जीवन उम्र कम बताना

कोरोना महामारी भली नहीं है

सब कैद घरों में रहते,


अपनों की क्या महंगाई असर दिखाये

कोरोना का नाम हो गया

मौतों को कम श्मशान पड़ गया।।


"आज नहीं माँ भाती मुझको"

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माँ निशांत शांत चित्त लेकर

कुंठित दिल सी लगती हो

बिंदिया सजती,कजरा आंखों

गजरा जूड़ा नहीं रखती हो,

आज नहीं भा रहीं मां मुझको

सफ़ेद लपेट वसन देह लिया

सूना सूना लगता मुखड़ा

वो खिलता मायूस मुखड़ा तेरा

दादी रोती बयान करे

लुट गया घरवार मेरा

क्या खता क्यों खफा हुए

सोकर चले गए सीढ़ी

माँ नहीं भाती अब तुम

श्रृंगार सजी माँ रहती

जन्मों जन्मों का वादा करके

छोड़ पिताजी नहीं रहे।।


विमल सागर

बुलन्दशहर

उत्तर प्रदेश



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