जयश्री बीर्मी
बहुत छोटी थी मैं जब ये कहानी पढ़ी थी,कुछ दिनों से सोच रही थी कि लिखू या नहीं?शायद यही सही समय है कि मैं लिख ही दूँ।
एक गांव में एक परिवार रहता था नंदू उसकी बीवी सविता और छोटा बच्चा बिरजू। बहुत पहले महामारी मैं हैजा की जानलेवा बीमारी फैली थी।
गांव को हैजा ने ऐसे घेरा कि कुछ दिनों मैं कई लोग चल बसे और अर्थियों की मांग खूब बढ़ ने लगी।
गांव के बाहर झोपड़ी में नंदू अर्थिया बेचने का काम करता था, उसे अपना व्यापार बढ़ता नज़र आया और लालच जगी वो दिन रात काम करने लगा।और वहीं काम कर गया ।अर्थशास्त्र का नियम,खपत के अनुपात मे सप्लाई कम होने से कीमत मे बढ़ोतरी हुई और उसके लालच ने उसे अंधा बना दिया और दिन रात कमाई मैं जुट गया। रात मैं जंगल से बांस काट कर लाता और दिन भर अर्थियां बना बना कर बेचता और वो भी दुगुने,तिगुने भाव मे बेचता था। न ही उसे दिन का पता और न रात का।
घर परिवार सब भूल के मुनाफ़ा कमाने में खो सा गया था। ऐसे ही दिन बीतते जा रहे थे और अपनी कमाई से बहुत खुश था। और अपने बच्चे और पत्नी के साथ सुनहरे भविष्य के सपने देख ने लगा। एक दिन नंदू काम में डूबा था कि एक औरत आई और एक छोटी अर्थी की मांग की वो तो नंदू अपनी कमाने की में तीन गुना भाव बोल दिया। पर सिसिकियां सुनकर उस औरत को देख के हक्का-बक्का रह जाता है।आंसूओ में सना उसका चेहरा और सूजी हुई आंखों ने उसे चौका दिया। तो क्या हैजा मेरे घर तक पहुँच कर मेरे बच्चे को खा गया? नंदू को जब पता चला कि उसका अपना बच्चा हैजे का शिकार हो चुका है तो पहले तो फूट-फूट कर रोया और घर जा कर अपने बच्चे का अंतिम संस्कार कर जब घर पहुंचा तो उसने कसम खाई की अब वह सब को अर्थी बिनामुल्य देगा,वैसे भी अब किसके लिए बचाना था पैसा? इतना बड़ा धक्का खा के उसे अक्ल आई भी पर जब चिड़ीया चुग गई खेत।
बस यही उदाहरण बिठा रहे है आज के कुछ मुनाफ़ाखोर व्यापारी जो ऑक्सीजन, दवाइयां और करोना के लिए जरूरी सामान की बिक्री में बेईमानी कर रहे है। साँसों के सौदागर ये जो इंसानों की ज़िंदगी के साथ खेल रहे है उनकी अंतरात्मा इजाज़त कैसे देती है। ईश्वर न करें महामारी उनके घर को ले डूबे, शायद तब दर्द महसूस हो।
जयश्री बीर्मी (अहमदाबाद,गुजरात)