ग़ज़ल


साधना कृष्ण

तुम ,सपनीली दौलत हो मेरी।

हाँ अलबेली आदत हो मेरी।।


माँगी जिसको सज़दे में हरदम।

ऐसी ही पाक इबादत हो मेरी।।


सोते जगते रहती यादों में।

इतनी सुन्दर सी चाहत हो मेरी।।


लगती हो अंधे की लाठी सी।

सच्ची मुच्ची सी राहत हो मेरी।।


घन दौलत सबकुछ तू ही मेरी।

फिर भी लगती आफत हो मेरी।।


साधना कृष्ण

लालगंज,वैशाली ,बिहार

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