नीलम द्विवेदी
नियति से लड़कर क्या करना,
नियति से डरकर क्या जीना,
नियति तो अपना काम करेगी,
जो होना है वो तो होगा,
हो सकता है कि छीन ले जाए,
होठों तक आया अमृत का प्याला,
जैसे छिन जाया करती है,
भूखे के हाथों का निवाला,
नियति सोच कर रुकना मत,
अपने कर्मों पे डटे रहो,
जैसे किसान नियति से लड़कर,
खेतों में अन्न उगाता है,
आंधी तूफान भले आये,
जीवन की गति कब रुकती है,
आना जाना है परम सत्य,
खोना पाना है परम सत्य,
इसके बीच हमें जो वक्त मिला,
अपनों के बीच खिलाना है,
हर दिन खुशियों का नया पुष्प,
नियति का जोर सिर्फ तन तक,
मन को तो ये छू तक न पाये,
जो नश्वर है वो मिट जाएगा,
पर अमर आत्मा के बंधन,
राधा ने भी तो ये जाना था,
कि उसकी नियति में नहीं श्याम,
था साथ भले थोड़े पल का,
लेकिन हर पल को बांध लिया,
जो दूर हुआ केवल तन था,
मन से मन जुड़ा रहा सदा,
नियति को हरा दिया देखो,
कण कण में राधेश्याम लिखा।
नीलम द्विवेदी
रायपुर ,छत्तीसगढ़l