दर्द भरोसा टूटने का


पुष्पा गौतम

समय ने क्या खूब सिखाया, कौन अपना है कौन पराया यह खुलकर समझाया l

कौन भरोसा देकर दगा कर गया, जब सामने आया, दो पल को जमीन पैरों तले खिसक गई ए वक्त तूने क्या खूब रंग दिखाया l

 भरोसा किस पर करें, यह दिल अब समझ पाता नहीं l

मिलती हूं सबसे पर वह मुस्कान भी जाने कहां चली गई l

भरोसा ऐसा टूटा जैसे शरीर से जान चली गई l

ऐ वक्त तू ने भी क्या खूब समझाया, कौन अपना है कौन पराया यह खुल कर दिखाया l

 जैसे शीशा टूट कर जुड़ सकता, नहीं वैसे ही कौन कितना भी कहे वह अच्छा है पर अब दिल उससे दोबारा जुड़ सकता नहीं l

गांठ जो पड़ गई है दिल में भरोसा टूटने की, अब कोई कितना भी कहे ,करें, यह दोबारा उससे मिल सकता नहीं l

पुष्पा गौतम

   स्थान - हैदराबाद

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