बड़ा सुखद और
प्यारा था
माँ तेरा वो
आलिंगन,,,,,
देता था जो
हरदम मुझको
फिर से एक
नया जीवन,,,,,
जब भी हुई घुटन सी
मुझको/आता था
मै/तेरे पास ,,,,
बड़े प्यार से कहती
थी/ बेटा मत हो
तू/उदास ,,,
मिल जाता था
मरहम मुझको
भर जाते थे
जख्म मेरे ,,,,,,
जाने कौन सा
जादू था
उन शब्दों में
लिपटा तेरे ,,,,
सुबह सुबह खुलती
जब आँखें
बस तेरा ही
चेहरा होता,,,,
लगे नजर न मुझे
किसी की /ऐसा
तेरा पहरा होता,,,,
अभी शेष स्मृतियाँ
केवल/बंद पड़ी हैं जेहन में
हो सम्भव तो
आ जा फिर से
कर स्वीकार मेरा
आमंत्रण,,,,,
एक बार सिर्फ एक बार
बस चाहूँ तेरा
आलिंगन,,,,,,,,
राजेश कुमार सिन्हा
मुम्बई