जंजीर तोड़ उड़ें पंछी

 


श्री कमलेश झा

मानव - तेरे लिए बनाकर रखा एक पिजड़ा सुनहरा सा उसमे तुमको बंद करुंगा पहरा दूंगा गहरा सा ,खाने को दुंगा तुमको मनपसंद का भोजन साथ, मौज भरी जिंदगी तेरी दुख का न होगा नाम।।


मैना --क्यों चिंता मेरी है भाई क्यूँ करना है मुझको कैद मुझे पसंद मेरी आजादी कहाँ पसंद है किसको कैद,

कटु निबोड़ी मुझको अच्छी, नही चाहिए छप्पन भोग,मिल बांटकर मुझे पसंद है तीखे कड़वे जंगली भोग, तुम रख्खो वह पिंजरा जिसको करा रखा जिसपर सुनहरा रंग, मुझे पसंद खेल आसमां का

उड़ान भरने का अपना रंग।


क्यों दे दु अपनी आजादी दो टुकड़े के लालच में स्वाभिमान की क्यों दूं आहुति तेरे चुपड़ी बातों में।


मैना--- मैं भी कहती हूँ तोड़ो पिंचड़ा अपने अंदर के स्वार्थ का,

आओ चलें अब नीलगगन में 

छोड़ गुलामी संसार का


श्री कमलेश झा

भागलपुर

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