डा.देवेन्द्र शर्मा
आता है याद मुझको
मेरा गांव रे ,
जिंदगी ने खेला मुझसे ,
कैसा दांवरे ।
ओ सजन सांवरे !
याद आते मुझको ,
वे गूलर के पेड़ ,
देखो वे खिरनीं जातीं,
अरे !छेड़ छेड़ ।
हूक उठा जाती ,
वन खंडी छांव रे! ओ सजन..
तपती दोपहरी मुझे,
बुलाए इमली ,
दूर से पुकार जाती ,
मुझको मंडली ।
अम्मा पुकारे ,
जाता कौन ठांव रे!ओ सजन ..
कुंड तैराकियां ,
होतीं अधीर ,
लोग तैर जाते,
इस उस तीर ।
भैया भाभी हैं
मेरे कैसे भांवरे !ओ सजन..
रात को होती थीं ,
रामलीला ,
झूले हिंडोले से
सावन सजीला ।
दौड़ जाते देखने ,
बीच गांव रे! ओ सजन..
नीम के पेड़ों पर ,
झूले डाल-डाल ,
झूलतीं एक संग
सखी चार-चार ।
गीत गातीं भाभियां, रचे पांव रे!ओ सजन..
आई है चिट्ठी ,
पहले प्रहर ,
लाएगी भाभी
मेरे शहर ।
बोल रहा छत पर,
कौवा कांव रे! ओ सजन..
डा.देवेन्द्र शर्मा
अलवर (राज.)