रोशनाई

 



अतुल पाठक " धैर्य "

बेहद संभल के लिखना पड़ता है दिले जज़्बात को,

वरना रोशनाई पे नहीं गहराई पे सवाल उठने लगता है।


लहू मांगती है कलम अब रोशनाई से काम नहीं होता,

सच्चाई दम तोड़ती है अब झूठा इंसान नहीं रोता।


मैं ज़मीर की आवाज़ हूँ,

मैं बुलंद सी आगाज़ हूँ।


पन्ने पन्ने पे है ज़िक्र मेरा,

रोशनाई हूँ इक अलग अंदाज मेरा।


कभी आँसू में घुल जाती मैं,

कोई दिल से लिखता पढ़ता तो मुस्काती मैं।


धुँधले पड़ जाएं हर्फ़ तो क्या,

इक अलग सी छाप छोड़ जाती मैं।


रचनाकार-अतुल पाठक " धैर्य "

पता-जनपद हाथरस(उत्तर प्रदेश)

Popular posts
अस्त ग्रह बुरा नहीं और वक्री ग्रह उल्टा नहीं : ज्योतिष में वक्री व अस्त ग्रहों के प्रभाव को समझें
Image
गाई के गोवरे महादेव अंगना।लिपाई गजमोती आहो महादेव चौंका पुराई .....
Image
साहित्य समाज का आईना होता है। जैसा दिखता है, वैसा लिखता है : छाया त्यागी
Image
भोजपुरी के पहिल उपन्यासकार राम नाथ पांडे जी के पुण्य स्मृति में:--
Image
दि ग्राम टुडे न्यूज पोर्टल पर लाइव हैं अनिल कुमार दुबे "अंशु"
Image